शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

होठों का कालापन दूर करने के प्राकृतिक उपाय

होठों का कालापन
होंठों को खूबसूरत बनाने के लिए आप क्‍या नहीं करतीं। लिपस्टिक, लिप बाम, माश्‍चराइजर और ना जाने क्‍या-क्‍या। लेकिन, होंठों पर लगाये जाने वाले कई उत्‍पाद वास्‍तव में उन्‍हें खूबसूरत बनाने के बजाय लंबे समय में उन्‍हें नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आप भी अपने होठों के फटने या कालेपन से परेशान हैं तो इस स्‍लाइड शो में बताए गए प्राकृतिक उपायों को अपनाकर अपनी समस्‍या से छुटकारा पा सकते हैं।
कोको बटर
दो बड़े चम्मच कोको बटर, आधा छोटा चम्मच मधु वैक्स लीजिए। उबलते पानी पर एक बर्तन में वैक्स डालकर पिघला दीजिए। इसमें कोको बटर मिलाएं। अब इस मिश्रण को ठंडा होने के बाद ब्रश की मदद से होंठों पर लगाइए। इससे होंठ मुलायम होंगे और उनका कालापन दूर हो जाएगा।
दूध की मलाई
होंठों से रूखापन हटाने के लिए थोडी सी मलाई में चुटकी भर हल्दी‍ मिलाकर नियमित रूप से धीरे-धीरे होठों पर मालिश करें। आप देखेंगे कि इस घरेलू उपाय से कुछ ही दिनों में आपके होठ मुलायम और गुलाबी होने लगेंगे
गुलाब की पंखुडियां
होंठों के कालेपन को दूर करने के लिए गुलाब की पंखुडि़यां बहुत ही फायदेमंद होती है। इसके नियमित इस्‍तेमाल से होठों का रंग हल्‍का गुलाबी और चमकदार हो जाएगा इसके लिए गुलाब की पंखुडियों को पीसकर उसमें थोड़ी सी नींबू
क्‍या आप जानते है होंठों को कालापन नींबू से भी दूर हो सकता है। इसके लिए आप निचोड़े हुए नींबू को अपने होठों पर सुबह और शाम को रगड़ें।
केसर
होंठों का कालापन दूर करने के लिये कच्चे दूध में केसर पीसकर होंठों पर मलें। इसके इस्‍तेमाल से होंठों का कालापन तो दूर होता ही है साथ ही वे पहले से अधिक आकर्षक बनने लगते हैं।
शहद
शहद के इस्‍तेमाल से कुछ ही दिनों में आपके होंठ चमकदार और मुलायम हो जाते हैं। इसके लिए थोड़ा-सा शहद अपनी उंगली में लेकर धीरे-धीरे अपने होंठों पर मलें या फिर शहद में थोड़ा सा सुहागा मिलाकर अपने होंठों पर लगाएं। ऐसा एक दिन में दो बार करें फिर देखें इसका असर।
जैतून का तेल
यदि होंठ पूरी तरह से फट चुके हैं और उनमें कालापन भी आ रहा है तो जैतून का तेल यानी ऑलिव ऑयल और वैसलीन मिलाकर दिन में तीन या चार बार फटे होंठों पर लगाने से फायदा होता है। इनका लेप होंठों पर 4-5 दिन लगातार लगाने से होठों की दरारें भी भरने लगती हैं और होंठ हल्‍के गुलाबी भी होने लगते हैं।
चुकंदर
चुकंदर को ब्‍लड बनाने वाली मशीन भी कहते है। चुकंदर होंठ के लिए भी उतना ही फायदेमंद होता है। चुकंदर को काटकर उसके टुकड़े को होंठों पर लगाने से होठ गुलाबी व चमकदार बनते हैं।
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बुधवार, 8 जनवरी 2014

माइग्रेन (आधे सिर में दर्द)

इस रोग से पीड़ित रोगी के सिर में बहुत तेज दर्द होता है तथा यह दर्द सिर के एक भाग में होता है। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।

माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग होने का लक्षण:-

इस रोग से पीड़ित रोगी के सिर के आधे भाग में तेज दर्द होता है तथा सिर में दर्द होने के साथ-साथ रोगी को उल्टी होने की इच्छा भी होती है। इसके अलावा रोगी को चिड़चडाहट तथा दृष्टिदोष भी उत्पन्न होने लगता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर निश्चित समय पर होता है।

माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग होने का कारण-

1. माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग रोगी व्यक्ति को दूसरे रोगों के फलस्वरूप हो जाता है जैसे- नजला, जुकाम, शरीर के अन्य अंग रोग ग्रस्त होना, पुरानी कब्ज आदि।

2. स्त्रियों को यदि मासिकधर्म में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो इसके कारण स्त्रियों को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।


3. आंखों में दृष्टिदोष तथा अन्य रोग होने के कारण भी माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।

4. यकृत (जिगर) में किसी प्रकार की खराबी तथा शरीर में अधिक कमजोरी आ जाने के कारण व्यक्ति को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।


5. असंतुलित भोजन का अधिक उपयोग करने के कारण रोगी को माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो सकता है।

6. अधिक श्रम-विश्राम करने, शारीरिक तथा मानसिक तनाव अधिक हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्तियों को हो सकता है।


7. औषधियों का अधिक उपयोग करने के कारण भी माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) हो जाता है।


माइग्रेन रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-


1. इस रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को रसाहार (चुकन्दर, ककड़ी, पत्तागोभी, गाजर का रस तथा नारियल पानी) आदि का सेवन भोजन में करना चाहिए और इसके साथ-साथ उपवास रखना चाहिए।

माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) से पीड़ित रोगी को अधिक मात्रा में फल, सलाद तथा अंकुरित भोजन करना चाहिए और इसके बाद सामान्य भोजन का सेवन करना चाहिए।


3. रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में मेथी, बथुआ, अंजीर, आंवला, नींबू, अनार, अमरूद, सेब, संतरा तथा धनिया अधिक लेना चाहिए। माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) से पीड़ित रोगी को भोजन संबन्धित गलत आदतों जैसे- रात के समय में देर से भोजन करना तथा समय पर भोजन न करना आदि को छोड़ देना चाहिए।

4. रोगी व्यक्ति को मसालेदार भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा इसके अलावा बासी, डिब्बाबंद तथा मिठाइयों आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।


5. माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग में रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ सुबह के समय में चाटना चाहिए तथा इसके अलावा दूब का रस भी सुबह के समय में चाट सकते हैं। जिसके फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

6. माइग्रेन रोग (आधे सिर में दर्द) का इलाज करने के लिए पीपल के कोमल पत्तों का रस रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम सेवन करने के लिए देने के फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


7. माइग्रेन रोग का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति के माथे पर पत्ता गोभी का पत्ता प्रतिदिन बांधना चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


8. प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा नाक से भाप देकर रोगी व्यक्ति के माइग्रेन रोग को ठीक किया जा सकता है। नाक से भाप लेने के लिए सबसे पहल एक छोटे से बर्तन में गर्म पानी लेना चाहिए। इसके बाद रोगी को उस बर्तन पर झुककर नाक से भाप लेना चाहिए। इस क्रिया को कुछ दिनों तक करने के फलस्वरूप माइग्रेन रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।


9. माइग्रेन रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकर के स्नान भी हैं जिन्हे प्रतिदिन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है। ये स्नान इस प्रकार हैं-रीढ़स्नान, कुंजल, मेहनस्नान तथा गर्मपाद स्नान।


10. माइग्रेन (आधे सिर में दर्द) रोग का इलाज करने के लिए प्रतिदिन ध्यान, शवासन, योगनिद्रा, प्राणायाम या फिर योगासन क्रिया करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

खजूर

* दांतों का गलना – छुहारे खाकर गर्म दूध पीने से कैलशियम की कमी से होने वाले रोग, जैसे दांतों की कमजोरी, हड्डियों का गलना इत्यादि रूक जाते हैं।
* रक्तचाप – कम रक्तचाप वाले रोगी 3-4 खजूर गर्म पानी में धोकर गुठली निकाल दें। इन्हें गाय के गर्म दूध के साथ उबाल लें। उबले हुए दूध को सुबह-शाम पीएं। कुछ ही दिनों में कम रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगी।
* कब्ज – सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है। खजूर का अचार भोजन के साथ खाया जाए तो अजीर्ण रोग नहीं होता तथा मुंह का स्वाद भी ठीक रहता है। खजूर का अचार बनाने की विधि थोड़ी कठिन है, इसलिए बना-बनाया अचार ही ले लेना चाहिए।
* पुराने घाव – पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं।
* मासिक धर्म : छुहारे खाने से मासिक धर्म खुलकर आता है और कमर दर्द में भी लाभ होता है।
* खजूर गर्भवती महिलाओं में दूध की मात्रा में वृद्धि करता है और अधिक ऊर्जा प्रदान करता है।
* आंख की पलक पर गुहेरी रोग हो जाता है। खजूर की गुठली को रगड़कर गुहेरी पर लगाए। आराम मिलेगा।
* मोटापा - खजूर का सेवन मोटापा लाता है तथा शरीर का भार बढ़ता है, अतः मोटे व्यक्ति सोचकर खाए। दुबले व्यक्ति भार बढ़ाने के लिए खा सकते हैं।
* जिनकी पाचन शक्ति अच्छी हो वे खजूर खाएं, क्योंकि यह पचाने में समय लेती है। छुहारे, पुरा वर्ष उपलब्ध रहते है। खजूर केवल सर्दी में तीन महीने। जब जो उपलब्ध हो, उसका सेवन करें।

लाल टमाटर

टमाटर में संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल, कैलोरी और सोडियम स्वाभाविक रूप से कम होता है। टमाटर थियमिन, नियासिन, विटामिन बी -6, मैग्नीशियम, फास्फोरस और तांबा, भी प्रदान करता है, जो सभी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। उन सबके ऊपर एक चम्‍मच टमाटर आपको देगा 2 ग्राम फाइबर, जो दिन भर में जितना फाइबर चाहिये उसका 7 प्रतिशत होगा। जो टमाटर में अपेक्षाकृत उच्च पानी भी होता है, जो उन्हें गरिष्ठ भोजन बनाता है।

सामान्यत: टमाटर सहित अधिक सब्जियां और फल खाने से उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, स्ट्रोक, और हृदय रोग से सुरक्षा मिलती है। आइये देखें, कि टमाटर को एक उत्कृष्ट स्वस्थ विकल्प कौन बनाता है।

स्वस्थ त्वचा टमाटर आपकी त्वचा बहुत अच्छी कर देता है। भी गाजर और शकरकंद में भी पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन, सूर्य की क्षति से त्वचा की रक्षा करने में मदद करता है। टमाटर का लाइकोपीन पराबैंगनी प्रकाश क्षति से भी त्वचा को कम संवेदनशील बनाता है, जो लाइनों और झुर्रियों का एक प्रमुख कारण होता है।

मजबूत हड्डियां टमाटर हड्डियों को मजबूत बनाता है।टमाटर में विटामिन के और कैल्शियम दोनों ही हड्डियों को मजबूत बनाने और मरम्मत के लिए बहुत अच्छे होते हैं। देखा गया है, कि लाइकोपीन हड्डियों को सुधारता भी है, जो ऑस्टियोपोरोसिस से लड़ने के लिए बहुत बढ़िया तरीका है।

कैंसर से लड़ना-
टमाटर प्राकृतिक रूप से कैंसर से लड़ता है। प्रोस्टेट, गर्भाशय ग्रीवा, मुंह, ग्रसनी, गला, भोजन-नलिका, पेट, मलाशय, गुदा संबंधी, प्रोस्टेट और डिम्बग्रंथि के कैंसर सहित कई तरह के कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। टमाटर के एंटीऑक्सीडेंट (विटामिन ए और सी) फ्री रैडिकल्स से लड़ते हैं

रक्त शर्करा-
टमाटर आपकी रक्त शर्करा को संतुलित रख सकता है। टमाटर, क्रोमियम का एक बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है।

दृष्टि-
टमाटर आपकी दृष्टि में सुधार कर सकता है। टमाटर जो विटामिन ए प्रदान करता है, वो दृष्टि में सुधार और रतौंधी को रोकने में मदद कर सकता है। हाल के शोध से पता चला है कि, टमाटर लेने से धब्बेदार अध: विकृति, एक गंभीर और अपरिवर्तनीय आंख की स्थिति को कम करने में मदद मिल सकती है।

पुराना दर्द-
टमाटर पुराने दर्द को कम कर सकता है। अगर आप उन लाखों लोगों में से एक हैं, जिनको हल्का और मध्यम पुराना दर्द रहता है (गठिया या पीठ दर्द ), तो टमाटर दर्द को खत्म कर सकता है। टमाटर में उच्च बायोफ्लेवोनाइड और कैरोटीन होता है, जो प्रज्वलनरोधी कारक के रूप में जाना जाता है।

वजन घटाना -
टमाटर आपको आपका वजन कम करने में मदद कर सकता है। अगर आप एक समझदार आहार और व्यायाम की योजना पर हैं, तो अपने रोजमर्रा के भोजन में बहुत सारा टमाटर शामिल करें। ये एक अच्छा नाश्ता बनाएंगे और सलाद, कैसरोल, सैंडविच और अन्य भोजन को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्‍योंकि टमाटर में ढेर सारा पानी और फाइबर होता है, इसीलिये वजन नियंत्रण करने वाले इसे 'फिलिंग फूड' कहते हैं, वह खाना जो जल्‍दी पेट भरते हैं, वो भी बिना कैलोरी या फैट बढ़ाये।

टमाटर खाने के अन्य फायदे –
टमाटर में विटामिन, प्रोटीन, वसा आदि तत्व‍ मौजूद होते हैं। इसके अलावा टमाटर में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है। आइए जानते हैं कि टमाटर किन‍-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद है –
भूख बढाने के लिए – टमाटर खाने से भूख बढती है। इसके अलावा टमाटर पाचन शक्ति, पेट से संबंधित अनेक समस्याओं को दूर करता है। टमाटर खाने से पेट साफ रहता है और इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
त्वचा के लिए – टमाटर खाने से सनबर्न और टैन्ड स्किन में फायदा होता है। टमाटर में पाया जाने वाला लाइकोपीन तत्व त्वचा को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाता है।
पेट के लिए – पेट में कीड कीड़े हैं तो हर रोज खाली पेट टमाटर खाने फायदा होता है। टमाटर में हींग का छौका लगाकर पीजिए, पेट के सारे कीडे मर जाएंगे। टमाटर पर काली मिर्च लगाकर खाना भी काफी फायदेमंद होता है।
डायबिटीज के लिए – डायबिटीज रोगियों के लिए टमाटर खाना बहुत फायदेमंद होता है। हर रोज एक खीरा और एक टमाटर खाने से डायबिटीज रोगी को लाभ मिलता है। टमाटर आंखों व पेशाब संबंधी रोगों के लिए भी फायदेमंद है।
लीवर और किडनी के लिए – टमाटर खाने से लीवर और किडनी की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। हर रोज टमाटर का सूप पीने से लीवर और किडनी को फायदा होता है।
गठिया के लिए – अगर आपको गठिया है तो टमाटर का सेवन कीजिए। एक गिलास टमाटर के रस को सोंठ में डालकर अजवायन के साथ सुबह-शाम पीजिए, गठिया में फायदा होगा।

मोटापा कम करने के लिए ध्यान ----

मोटापा कम करने के लिए ध्यान ----
- कई लोग सोचते है की नियंत्रण में भोजन करेंगे ; पर वे अधिक और गलत भोजन कर लेते है ; फिर पछताते है जिसका कोई फायदा नहीं होता .

- इसके लिए आइये एक ध्यान सीखते है . कुछ अंगूर ले लें ... काले , पीले , हरे , कैसे भी ले . - अब आँख बंद कर सुखासन (आलती पालती ) में बैठ जाए .अब हाथों में एक अंगूर ले लें . उसे बंद आँखों से महसूस
करे . वह ठंडा है या गरम , गोल है , चिकना है और अन्य बातें महसूस करे .


- अब उसे मुंह में रखे . अभी चबाये नहीं . उसे जीभ से महसूस करे . जीभ से उसे मुंह में इधर उधर घुमाए और उसकी गोलाई और उसके स्वाद के बारे में सोचे .मुंह में बनने वाली लार को महसूस करे .


- अब उसे एक बार चबाये और उससे निकलने वाले रस को महसूस करे . उसे निगले नहीं ; मुंह में ही इधर उधर घुमाए .वह कैसे स्वाद है ....मीठा , खट्टा ,महसूस करे .


- अब कुछ धीरे चबा कर निगल ले . सोचे की भगवान ने क्या कमाल के अंगूर बनाए है हमारे लिए ताकि हम स्वस्थ रहे और हमारे शरीर का विकास हो .भगवान को मन ही मन धन्यवाद दे .


- अब तक हमने टनों अंगूर खा लिए होंगे पर ऐसा स्वाद कभी नहीं चखा होगा .


- कई लोग जल्दी जल्दी बहुत सारा खाना खा लेते है . पर मन संतुष्ट नहीं होता . फिर वे और खाते है .ऐसे खाने से वह पचता भी नहीं . फिर कई टॉक्सिंस भी बनते है जो हमें बीमार कर देते है . और मोटापा भी बढ़ता है .


- यहीं तरीका हर समय भोजन के पहले अपनाए ; तो थोड़े में ही भूख भी मिटेगी और मन संतुष्ट होगा . भोजन अच्छे से पचेगा .


- इसीलिए हमें टीवी देखते देखते , बातें करते , पढ़ते पढ़ते नहीं खाना चाहिए . हमारा ध्यान पूरी तरह खाने पर ही हो .

पथरी

शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है . शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है , जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़जाती है .
धूप में व तेज गर्मी में काम करने से व घूमने से उष्ण प्रकृति के पदार्थों के अति सेवन से मूत्राशय परगर्मी का प्रभाव हो जाता है, जिससे पेशाब में जलन होती है।
कभी-कभी जोर लगाने पर पेशाब होती है, पेशाब में भारी जलन होती है, ज्यादा जोर लगाने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पेशाब होती है। इस व्याधि को आयुर्वेद में मूत्र कृच्छ कहा जाता है। इसका उपचारहै-
उपचार : कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाईरहित ठंडा दूध वपानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दोदिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।
- महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरीटूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।
- गोमूत्र के सेवन सेभी पथरी टूट कर निकल जाती है .
- मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारीविकृतियाँ दूर होती हैं ।
- गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्वलेने से पिशाब खुलकरआता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है|
- खूब पानी पिए .
- कपालभाती प्राणायाम करें .
- हरी सब्जियां , टमाटर , काली चाय,चॉकलेट , अंगूर , बीन्स , नमक , एंटासिड , विटामिन डी सप्लीमेंट कम ले .
- रोजाना विटामिन बी-६ (कम से कम १० मि.ग्रा. ) और मैग्नेशियम ले .
- यवक्षार ( जौ की भस्म ) का सेवन करें .
- मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .
- ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलकर २१दिन तक प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।
- पतंजलि का दिव्य वृक्कदोष हर क्वाथ १० ग्राम ले कर डेढ़ ग्लास पानी में उबाले .चौथाई शेष रह जाने पर सुबह खाली पेट और दोपहर के भोजन के ५-६ घंटे बादले .इसके साथ अश्मरिहर रस के सेवनसे लाभ होगा . जिन्हें बार बार पथरी बनाने की प्रवृत्ति है उन्हें यह कुछ समय तक लेना चाहिए .
- मेहंदी की छाल को उबाल कर पीने से पथरी घुल जाती है .
- नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरीहोने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।
- 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दोचम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।
- पका हुआ जामुन पथरीसे निजात दिलाने मेंबहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
- बथुआ की सब्जी खाए .
- आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है।आंवला का चूर्ण मूलीके साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।
- जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।
- सहजन की सब्जी खानेसे गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा ।
- मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पी‍जिए। पथरीनिकल जाएगी।
- चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।
- तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।
- जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
- बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जातीहै। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा

नजला/ जुकाम/खांसी/ दमा/खरार्टे के लिए चिकित्सा

जौ (Barley) एक किस्म का अनाज होता है जो कुछ कुछ गेहूं जैसा दिखता है। बाजार से लगभग 250 ग्राम जौ ले आएँ। ध्यान रहे कि इसमे घुन न लगा हुआ हो। इसे साफ कर ले। मंद मंद आग पर कड़ाही मे डाल कर भून ले। ध्यान रहे कि जले नहीं। इसके बाद इसे मोटा मोटा कूट/ पीस ले।
जरूरत के समय 1 बड़ा चम्मच जौ का चूर्ण लेकर उसमे 1 छोटा चम्मच देशी घी मिला कर तेज गरम तवे पर या तेज गरम लोहे की कड़छी मे डाल कर इसका धुआँ नाक से या मुँह से खींचें। यदि लकड़ी के जलते हुए कोयले पर डाल कर धुआँ खींचे तो और भी अधिक लाभदायक है। धुआँ लेने के 15 मिनट पहले और 2 घंटे बाद तक ठंडा पानी न पिए। प्यास लगे तो गरम दूध पिए।

यदि बार बार मुँह सूखता हो और प्यास लगती हो तो ये प्रयोग न करें।

नए जुकाम मे जब सिर भारी हो और नाक बंद तब यह प्रयोग करें और चमत्कार देखें। 5 मिनट मे फायदा होगा।
खांसी, दमे मे इन्हेलर कि तरह तत्काल फायदा दिखता है।
खर्राटे मे प्रतिदिन ये धुआँ लें। सुबह शाम किसी भी समय ले सकते हैं।
कोई साइड इफेक्ट नहीं। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित।
अन्य दवाओं के साथ भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
बदलते मौसम मे स्वस्थ भी प्रयोग करें ताकि नजले जुकाम से बच सकें।
दिन मे 4 बार तक प्रयोग कर सकते हैं। एक समय मे 4 बड़े चम्मच जौ घी
मिला कर प्रयोग कर सकते हैं

यदि बार बार मुँह सूखता हो और प्यास लगती हो तो ये प्रयोग न करें।

घरेलू अचूक नुस्खे -



जब बाल झड़ रहे हों


1. नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
2. बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।
3. दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

कफ और सर्दी जुकाम में


सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।

1. नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।
2. गले में खराश या ड्राई कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।
3. नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।
4. तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।


शरीर, सांस की दुर्गध में


यह परेशानी भी आम है। कई बार तो हमें इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाता है।

1. नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।
2. गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।
3. पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।
4. सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।
5. इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।

उच्च रक्त चाप

1- कुछ दिनों तक लगातार आधा चम्मच मैथी दाना का पॉउड़र पानी के साथ लेने से उच्च रक्त चाप में लाभ होता है।
2- तुलसी के पाँच पत्ते और नीम के दो पत्ते कुछ दिनों तक लेने से उच्च रक्त चाप मे लाभ होता है।
3- तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से उच्चरक्त चाप में लाभ होता है।

4-दो कली लहसुन की खाली पेट लेने से उच्च रक्त चाप में फायदा होता है।
5- लौकी का एक कप रस सुबह खाली पेट लेने से उच्च रक्त चाप कम होने में फायदा करता है।
6- प्रतिदिन एक चम्मच तुलसी के पत्तों का रस लेना सभी रोगों में लाभकारी होता है।

पैर में मोच आ जाय 

1- आक या पान का पत्ता या आम का पत्ते को चिकना कर नमक लगा कर उस स्थान पर बांधने से काफी लाभ होता है।
2- चोट लगने पर नमक में काले तिल, सूखा नारियल और हल्दी मिला कर पीस कर गरम कर चोट वाले स्थान पर बांधने से आराम मिलता है।

घुटनों के दर्द के कुछ उपाय

1- सुबह खाली पेट तीन-चार अखरोट की गिरियां निकाल कर कुछ दिनों तक खाना चाहिए। इसके नियंत्रित सेवन से घुटनों के दर्द में आराम मिलता है। नारियल की गिरी भी खाई जा सकती है। इससे घुटनों के दर्द में राहत मिलती है।


अस्थमा की समस्या 


1- तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी काली मिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
2- गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रि‍त करने में राहत मिलती है।

किड़नी में पथरी की समस्या

तीन हल्की कच्ची भिंड़ी को पतली-पतली लम्बी-लम्बी काट लें। कांच के बर्तन में दो लीटर पानी में कटी हुई भिंड़ी ड़ाल कर रात भर के लिए रख दें। सुबह भिंड़ी को उसी पानी में निचोड़ कर भिंड़ी को निकाल लें। ये सारा पानी दो घंटों के अन्दर-अन्दर पी लें। इससे किड़नी की पथरी से छुटकारा मिलता है।


पेट में वायु की अधिकता 
1- ऐसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए भोजन के बाद 3-4 मोटी इलायची के दाने चबा कर ऊपर से नींबू पानी पीने से पेट हल्का होता है।
2- सुबह-शाम 1/4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण गर्म पानी के साथ लेने से पेट नर्म होता है।
3- अजवायन और काला नमक को समान मात्रा में मिला कर गर्म पानी से पीने से पेट का अफारा ठीक होता है।

नाभि के अपने स्थान से खिसक जाने पर 

1- मरीज़ को सीधा लिटाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आंवले का आटा बना कर उसमें अदरक का रस मिलाकर बांध दें और दो घंटों के लिए सीधा ही लेटे रहने दें। दो बार ऐसा करने से नाभि अपने स्थान पर आ जायेगी। दर्द और दस्त जैसे कष्ट भी दूर होंगे।
2- ऐसे समय में मरीज़ को मुंग की दाल वाली खिचड़ी खाने में देनी चाहिए।
3- अदरक और हींग का सेवन भी फायदा करता है।

दस्त की समस्या 

1- खाना खाने के बाद एक कप लस्सी में एक चुटकी भुना ज़ीरा और काला नमक ड़ाल कर पीएं। दस्त में आराम आयेगा।

2- अदरक का रस नाभि के आस-पास लगाने से दस्त में आराम मिलता है।
3- मिश्री और अमरूद खाने से भी आराम मिलता है।
4- कच्चा पपीता उबाल कर खाने से दस्त में आराम मिलता है।

बार-बार मूत्र आये 

1- सुबह-शाम एक-एक गुड़ और तिल से बना लड्ड़ु खाना चाहिए।
2- शाम के समय काले भुने हुए चने छिल्का सहित खाएं और एक छोटा सा टुकड़ा गुड़ का खाकर पानी पी लें।

उल्टी 


1- तुलसी के रस में बराबर की मात्रा में शहद मिला कर चाटने से उल्टी बन्द हो जाती है।
2- 2 चम्मच शहद में बराबर मात्रा में प्याज़ का रस मिला कर चाटने से उल्टी बन्द हो जाती है।
3- दिन में 5-6 बार एक-एक चम्मच पोदीने का रस पीने से उल्टी बन्द हो जाती है।

बच्चों को सर्दी या बुखार हो जाय तब 


1- दो-तीन तुलसी के पत्ते और छोटा सा टुकड़ा अदरक को सिलबट्टे पर पीस कर मलमल के कपड़े की सहायता से रस निकाल कर 1 चम्मच शहद मिला कर दिन में 2-3 बार देने से सर्दी में आराम मिलता है।
2- लौंग को पानी की बूंदों की सहायता से रगड़ कर उसका पेस्ट माथे पर और नाभि पर लगाना चाहिए।
3- एक कप पानी में चार-पाँच तुलसी के पत्ते और एक टुकड़ा अदरक ड़ाल कर उबाल लें पानी की आधी मात्रा रह जाने पर उसमें एक चम्मच गुड़ ड़ाल कर उबाल लें। दिन में दो बार दें। आराम आ जायेगा।

अमरबेल

जंगलों, सड़क, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड़ पर यह लग जाती है, वह पेड़ धीरे धीरे सूखने लगता है। इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। आदिवासी अंचलों में अमरबेल को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है, चलिए जानते हैं आज अमरबेल से जुडे हर्बल नुस्खों और आदिवासी जानकारियों को..


पूरे पौधे का काढ़ा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता है। आदिवासियों के अनुसार यह काढा घावों पर लगाया जाए तो यह घाव को पकने नहीं देता है।

बरसात में पैर के उंगलियों के बीच सूक्ष्मजीवी संक्रमण या घाव होने पर अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।

अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। यह मिश्रण एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है।

- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध देते है। इनके अनुसार यह दर्द निवारक की तरह कार्य करता है।

गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यदि आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो बाल पुन: उगने लगते है।

डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।
डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।

पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मुँह और पेट के कैंसर या ट्युमर में इस पौधे का काढा आराम दिलाता है, आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।

अदरक


अदरक रूखा, तीखा, उष्ण-तीक्ष्ण होने के कारण कफ तथा वात का नाश करता है, पित्त को बढ़ाता है। इसका अधिक सेवन रक्त की पुष्टि करता है। यह उत्तम आमपाचक है। भारतवासियों को यह सात्म्य होने के कारण भोजन में रूचि बढ़ाने के लिए इसका सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। आम से उत्पन्न होने वाले अजीर्ण, अफरा, शूल, उलटी आदि में तथा कफजन्य सर्दी-खाँसी में अदरक बहुत उपयोगी है।
सावधानीः रक्तपित्त, उच्च रक्तचाप, अल्सर, रक्तस्राव व कोढ़ में अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए। अदरक साक्षात अग्निरूप है। इसलिए इसे कभी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए ऐसा करने से इसका अग्नितत्त्व नष्ट हो जाता है।

औषधि-प्रयोगः

उलटीः अदरक व प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 चम्मच लेने से अथवा अदरक के रस में मिश्री में मिलाकर पीने से उलटी होना व जौ मिचलाना बन्द होता है।

हृदयरोगः अदरक के रस व पानी समभाग मिलाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

मंदाग्निः अदरक के रस में नींबू व सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है।

उदरशूलः 5 ग्राम अदरक, 5 ग्राम पुदीने के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक डालक पीने से उदरशूल मिटता है।

शीतज्वरः अदरक व पुदीने का काढ़ा देने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। शीतज्वर में लाभप्रद है।

पेट की गैसः आधा-चम्मच अदरक के रस में हींग और काला नमक मिलाकर खाने से गैस की तकलीफ दूर होती है।

सर्दी-खाँसीः 20 ग्राम अदरक का रस 2 चम्मच शहद के साथ सुबह शाम लें। वात-कफ प्रकृतिवाले के लिए अदरक व पुदीना विशेष लाभदायक है।
खाँसी एवं श्वास के रोगः अदरक और तुलसी के रस में शहद मिलाकर लें।

जनेऊ पहनने के लाभ


पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। जनेऊ पहनाने का संस्कार

सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र या जनेऊ यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांति मौजूद है| लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं जबकि सच तो कुछ और ही है| तो आइए जानें कि सच क्या है? जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा मिल जाती है| क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है| दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य छिपा है| दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता| आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का| अब एक एक जनेऊ में 9 - 9 धागे होते हैं| जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9 - 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है| अब इन 9 - 9 धांगों के अंदर से 1 - 1 धागे निकालकर देंखें तो इसमें 27 - 27 धागे होते हैं| अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 - 27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है| अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आता है, जो एक पूर्ण अंक है| अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 2 और जोड़ दें तो 9 + 2 = 11 होगा जो हमें बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो लोगों अर्थात् पति और पत्नी ( 1 और 1 ) के मिलने सेबना है | 1 + 1 = 2 होता है जो अंक विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है और चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है| जब हम अपने दोनो पक्षों का ऋण वहन कर लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है|

यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रमह सूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।

अलसी


अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन 

- जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।

- ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।

- आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।

- अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

- अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।

- अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।

- सिम का मतलब सेरीन या शांति, इमेजिनेशन या कल्पनाशीलता और मेमोरी या स्मरणशक्ति तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन या एकाग्रता, क्रियेटिविटी या सृजनशीलता, अलर्टनेट या सतर्कता, रीडिंग या राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी या शैक्षणिक क्षमता और डिवाइन या दिव्य है।



- त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।

- लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।

- जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ¬¬ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।

- कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

- अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।

- 1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।



अलसी सेवन का तरीकाः- हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।

इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।

बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।

अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।

इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।

डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)|

मूली -


ठंड में रोजाना थोड़ी मूली को सलाद के रूप में लेना चाहिए क्योंकि शरीर के लिए इसका नियमित सेवन बहुत अच्छा होता है क्योंकि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। इसके अलावा भी ठंड के मौसम में सलाद के रूप में मूली खाने के अनेक फायदे आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में

- मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। मूली के पत्ते काटकर नींबू निचोड़ के खाने से पेट साफ होता है व स्फूर्ति रहती है। पेट संबंधी रोगों में यदि मूली के रस में अदरक का रस और नीबू मिलाकर नियम से पियें तो भूख बढ़ती है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी कच्ची मूली फायदेमंद साबित होती है।

- हार्ट से संबंधित बीमारी से ग्रस्त लोगों व कोलेस्ट्रॉल पेशेन्ट्स के लिए मूली का सेवन लाभदायक होता है।ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए मूली का सलाद के रूप में नियमित रूप से सेवन अच्छा माना गया है क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर को शांत करने में मूली मदद करती है।

- सुबह-सुबह मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। मूली शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालकर ऑक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों और हड्डियों को मजबूत करती है।थकान मिटाने और अच्छी नींद लाने में भी मूली काफी फायदेमंद होती है।

बथुआ


- बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है बथुआ एक ऐसी सब्जी या साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है | विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है |


- इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है .

- यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है .

-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग भी लिया जा सकता है .

- सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .

- गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए .


- एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें .

- अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें .

- पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है .
- सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है।

- धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना लाभकारी है।

- बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न हो तो इसका रायता बनाकर खाएं।

- बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास की जगह सख्त हो, उसके कारण पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता है।

- सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर भी साफ हो जाएगा।

- बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और दर्द नहीं होता।

- यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने वाला है।

- पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब खुल कर आता है।

- इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।

- कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक मिलाकर प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

एलोवेरा

एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है।

* एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है।

* एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है।

* जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है।

* एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है।

* रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं।

* एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है।

* एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है।

* गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है।

* एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।

मुंह में अगर छाले

मुंह में अगर छाले हो जाएं तो जीना मुहाल हो जाता है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन, इसका इलाज आपके आसपास ही मौजूद है। मुंह के छाले गालों के अंदर और जीभ पर होते हैं। संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन छाले का प्रमुख कारण है। छाले होने पर बहुत तेज दर्द होता है। आइए हम आपको मुंह के छालों से बचने के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।

मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार–

शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें।

मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
छाले होने पर कत्था और मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों परलगाने चाहिए।

अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखिए। या केवल अमलतास के गूदे को मुंहमें रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।

अमरूद के मुलायम पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले से राहत मिलती है और छाले ठीक हो जाते हैं

कच्चे प्याज के कुछ स्वास्थ्य लाभ

एनीमिया ठीक करे-
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प्याज काटते वक्त आंखों से आंसू टपकते हैं,
ऐसा प्याज में मौजूद सल्फर की वजह से होता है
जो नाक के दृारा शरीर में प्रेवश करता है। इस
सल्फर में एक तेल मौजूद होता है
जो कि एनीमिया को ठीक करने में सहायक
होता है। खाना पकाते वक्त यही सल्फर जल
जाता है, तो ऐसे में कच्चा प्याज खाइये।

कब्ज दूर करे-
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इसमें मौजूद रेशा पेट के अंदर के चिपके हुए भोजन
को निकालता है जिससे पेट साफ हो जाता है,
तो यदि आपको कब्ज की शिकायत है
तो कच्चा प्याज खाना शुरु कर दीजिये।

गले की खराश मिटाए-
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यदि आप सर्दी, कफ या खराश से पीडित हैं
तो आप ताजे प्याज का रस पीजिये। इमसें गुड
या फिर शहद मिलाया जा सकता है।

ब्लीडिंग समस्या दूर करे-
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नाक से खून बह रहा हो तो कच्चा प्याज काट
कर सूघ लीजिये। इसके अलावा यदि पाइल्स
की समस्या हो तो सफेद प्याज खाना शुरु कर दें।

मधुमेह करे कंट्रोल-
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यदि प्याज को कच्चा खाया जाए तो यह शरीर
में इंसुलिन उत्पन्न करेगा, तो यदि आप
डायबिटिक हैं तो इसे सलाद में खाना शुरु कर दें।

दिल की सुरक्षा-
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कच्चा प्याज हाई ब्लड प्रेशर को नार्मल करता है
और बंद खून की धमनियों को खोलता है जिससे
दिल की कोई बीमारी नहीं होती।

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करे-
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इसमें मिथाइल सल्फाइड और अमीनो एसिड
होता है जो कि खराब कोलेस्ट्रॉल को घटा कर
अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढाता है।

कैंसर सेल की ग्रोथ रोके-
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प्याज में सल्फर तत्व अधिक होते हैं। सल्फर शरीर
को पेट, कोलोन, ब्रेस्ट, फेफडे और प्रोस्टेट कैंसर से
बचाता है। साथ ही यह मूत्र पथ संक्रमण
की समस्या को भी खत्म करता है।

मसूड़ों से खून रोकने के घरेलू उपचार

मसूड़ों से खून रोकने के घरेलू उपचार 
मसूड़ों में खून रोकने के लिए घरेलू उपचारों में खट्टे फल, दूध, कच्ची सब्जियों, बेकिंग सोडा, लौंग, लौंग का तेल, पुदीना तेल, कैलेंडुला पत्ती चाय, कैमोमाइल चाय, नमकीन, मसूड़ों में मालिश, धूम्रपान छोडऩा और वसायुक्त भोजन आदि शामिल हैं। मसूड़ों में खून एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें मसूड़ों में सूजन दिखाई देती है और ब्रश करने और किसी कड़े भोजन के खाने के दौरान अक्सर खून आ जाता है। ऐसा आमतौर पर मुंह की खराब स्वच्छता के कारण होता है, लेकिन यह भी गर्भावस्था की तरह अन्य स्वास्थ्य की स्थिति जैसे विटामिन की कमी, स्कर्वी, ल्यूकेमिया या संक्रमण के किसी भी प्रकार का संकेतक होता है। कुछ घरेलू उपचारों का प्रयोग कर के आप इस दिक्कत से निजाद पा सकते हैं।

दूध
दूध में भी कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है, जिसकी नियमित रूप से जरूरत होती है आपके मसूड़ों को भरने के लिए। इसलिये मसूड़ों में खून रोकने के लिए नियमित आधार पर दूध लिया जाना चाहिए।
कच्ची सब्जियां
कच्ची सब्जियों को चबाने से दांत साफ होते हैं और मसूड़ों में रक्त परिसंचरण को प्रेरित करता है इसलिए प्रतिदिन कच्ची सब्जियां खाने की आदत डाल लेनी चाहिए।

क्रैनबेरी और गेहूँ की घास का रस
क्रैनबेरी या गेहूँ की घास का रस उन लोगों को राहत दे सकता है, जिनके मसूड़ों से खून बहता है। कैनबेरी के जूस में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मसूड़ों से बेक्टीरिया को दूर कर देता है।

बेकिंग सोडा
बेकिंग सोडा माइक्रोइंवायरनमेंट तैयार करके मुंह में ही बेक्टीरिया को मार देता है और इसे आप मसूड़ों पर उंगली से लगा सकते हैं।

लौंग
लौंग को या तो आप मुंह में रख सकते हैा या धीरे-धीरे चबा सकते हैं या लौंग के तेल से मसूड़ों पर मालिश कर सकते हैं। यह एक प्राचीन पद्धति है और बेहद आसान घरेलू नुस्खा है, जो सभी प्रकार की दांतों की समस्याओं से निजात दिलाता है।

कपूर, पिपरमिंट का तेल
कपूर और पिपरमिंट के तेल का इस्तेमाल करने से आप अपने मुंह की ताजग़ी और स्वच्छता बनाए रखने के लिए कर सकते हैं।

नमक का पानी
नमक का पानी ब्रश करने के बाद हलके गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करने से आराम मिलता है। मसूड़ों में खून रोकने का यह बहुत अच्छा घरेलू नुस्खा है।
मालिश
मालिश ब्रश करने के बाद मसूड़ों पर उंगली से धीरे-धीरे मालिश करने से उसमें रक्स संचार अच्छा होता है। इससे मसूड़े मजबूत होते हैं और रक्त आना बंद हो जाता है।
वसायुक्त भोजन बंद करें वसायुक्त, तीखा और ज्यादा आहार लेने से दांतों के बीच स्थान पर खाना फंस जाता है जो सडऩे लगता है और आगे चलकर यह मसूड़ों में खून की वजह बन जाता है या फिर गिंगिवाइटिस हो जाता है। जितना हो सके उतना ऐेस वसा युक्त भोजन से बचें।
धुम्रपान न करें
धूम्रपान न करें धूम्रपान करने से मुंह में अवायवीय वातावरण बन जाता है , जो वेक्टीरिया के पैदा होने के लिए अच्छा होता है। इसलिए अपने मुंह को वेक्टीरिया मुक्त रखने के लिए आपको धूम्रपान नहीं करना चाहिए।

चेहरे की रंगत बढाए टमाटर का जूस..आजमाईये जरूर

रोज सवेरे एक गिलास ताजे टमाटर का जूस तैयार करें, दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें और सिर्फ़ एक महिने के अंदर चेहरे की रंगत देखिए, आईना शरमा जाएगा l जानकार इसे वजन कम करने का एक अच्छा उपाय मानते है जबकि गुजरात के आदिवासी इसे यकृत और फ़ेफ़डों के लिए बेहतर टोनिक मानते है..आजमाईये जरूर, देसी ज्ञान है, असर सर चढकर बोलेगे..स्वस्थ रहें, मस्त रहें..

गेहूँ

सामान्यतः लोग गेहूँ को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। 

खाँसी - 20 ग्राम गेहूँ के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खाँसी जल्दी चली जाती है।

दाहकता - 80 ग्राम गेहूँ को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूँ के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है। 

अस्थि भंग - एक मुठ्ठी गेहूँ को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है। 
स्मरण शक्ति- गेहूँ से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

तुलसी








सर्दियों में बालों की रुसी से सुरक्षा -

सर्दियों में बालों की रुसी से सुरक्षा - 
- नारियल और जैतून के तेल की बराबर मात्रा लेकर इसमें कुछ बूंदे नींबू के रस की मिला ली जाएं और इस मिश्रण से बालों की मालिश लगभग 10 मिनिट तक की जाए और फिर गर्म तौलिए से सिर को 3 मिनिट के लिए ढक लिया जाए, बालों से जुडी समस्याओं में काफी फायदा करता है।
- मेथी के बीजों में फॉस्फेट, लेसिथिन और न्यूक्लिओ-अलब्यूमिन होने से ये कॉड-लिवर ऑयल जैसे पोषक और बल प्रदान करने वाले होते हैं। इसमें फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर, नियासिन, थियामिन, कैरोटीन आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं जो बालों की बेहतर सेहत के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। बालों में रूसी होने पर मेथी दानों को कुचलकर या ग्राईंडर में पीसकर चूर्ण बनाया जाए। लगभग 3 ग्राम चूर्ण लेकर इसमें पानी मिलाया जाए ताकि पेस्ट तैयार हो जाए। इस पेस्ट को बालों में लगाएं और आधा घंटे बाद धो लें, सप्ताह में 2 से 3 बार ऐसा करने से डेंड्रफ की समस्या से छुटकारा मिल जाता है।

चीकू खाने के फायदे--

- चीकू हमारे ह्रदय और रक्त वाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है।

- चीकू कब्ज और दस्त की बिमारी को ठीक करने बहुत सहायक होता है।

- चीकू खाने से gastrointestinal CANCER के होने का खतरा कम होता है।

- चीकू में Beta-Cryptoxanthin होता है जो की फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है।

- चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।

-यह हृदय रोगों और गुर्दे के रोगों को भी होने से रोकता है।

- चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं।

- चीकू की छाल बुखार नाशक होती है। इस छाल में टैनिन होता है।

- चीकू के फल में थोड़ी सी मात्रा में संपोटिन नामक तत्व रहता है। चीकू के बीज मृदुरेचक और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में सापोनीन एवं संपोटिनीन नामक कड़वा पदार्थ होता है।

- चीकू शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रूचिकारक हैं।

- चीकू के पे़ड की छाल से चिकना दूधिया- `रस-चिकल` नामक गोंद निकाला जाता है। उससे चबाने का गोंद च्युंइगम बनता है। यह छोटी-छोटी वस्तुओं को जो़डने के काम आता है। दंत विज्ञान से संबन्धित शल्य çRया में `ट्रांसमीशन बेल्ट्स` बनाने में इसका उपयोग होता है। `

- चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है।

- भोजन के एक घंटे बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ कारक है।

- चीकू के नित्य सेवन से धातुपुष्ट होती है तथा पेशाब में जलन की परेशानी दूर होती है।

पपीता

पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है।

आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है।

पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं। पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है।

१) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोगी को एक पपीता (कच्चा) नियमित रूप से खाते रहना चाहिए।

२) बवासीर एक अत्यंत ही कष्टदायक रोग है चाहे वह खूनी बवासीर हो या बादी (सूखा) बवासीर। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाते रहने से काफी फायदा होता है।

३) पपीता यकृत तथा लिवर को पुष्ट करके उसे बल प्रदान करता है। पीलिया रोग में जबकि यकृत अत्यन्त कमजोर हो जाता है, पपीते का सेवन बहुत लाभदायक होता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। इससे तिल्ली को भी लाभ पहुंचाया है तथा पाचन शक्ति भी सुधरती है।

४) महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म एक आम शिकायत होती है। समय से पहले या समय के बाद मासिक आना, अधिक या कम स्राव का आना, दर्द के साथ मासिक का आना आदि से पीड़ित महिलाओं को ढाई सौ ग्राम पका पपीता प्रतिदिन कम से कम एक माह तक अवश्य ही सेवन करना चाहिए। इससे मासिक धर्म से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है।

५) जिन प्रसूता को दूध कम बनता हो, उन्हें प्रतिदिन कच्चे पपीते का सेवन करना चाहिए। सब्जी के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है।

६) सौंदर्य वृध्दि के लिए भी पपीते का इस्तेमाल किया जाता है। पपीते को चेहरे पर रगड़ने से चेहरे पर व्याप्त कील मुंहासे, कालिमा व मैल दूर हो जाते हैं तथा एक नया निखार आ जाता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। इसके लिए हमेशा पके पपीते का ही प्रयोग करना चाहिए।

७) कब्ज सौ रोगों की जड़ है। अधिकांश लोगों को कब्ज होने की शिकायत होती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह दस्त साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।

८) समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें।

९) नए जूते-चप्पल पहनने पर उसकी रगड़ लगने से पैरों में छाले हो जाते हैं। यदि इन पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं।

१०) पपीता वीर्यवर्ध्दक भी है। जिन पुरुषों को वीर्य कम बनता है और वीर्य में शुक्राणु भी कम हों, उन्हें नियमित रूप से पपीते का सेवन करना चाहिए।

११) हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है। अगर वे पपीते के पत्तों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से एक कप की मात्रा में रोज पीते हैं तो अतिशय लाभ होता है।

गोंद के औषधीय गुण

गोंद के औषधीय गुण -
किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है 
पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है।
- सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।
- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने मंच तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .

नेत्र रोग

नुसखे : नेत्र रोग
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• यदि आँखों में जलन व लालिमा रहती हो तो ग्वार पाठे का ठण्डा गूदा आँखों पर बांधें। इससे लाभ होता है।
• त्रिफला चूर्ण को शहद में मिलाकर रात को सोते समय सेवन करने से आँखों की बहुत-सी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।
• आँवलेेेे को कूट कर दो घण्टे तक पानी में उबालने के बाद छानकर ठंडा करके दिन में तीन बार इस जल की बूंदें आँखों में डालें। इससे नेत्र रोग से राहत महसूस होती है।
• बेल की पत्तियों का रस निकाल कर बारीक कपड़े से छान लें। एक-दो बूँदें आँख में डालने से आँख का दर्द करना, आँख आना तथा आंखों से धुंधलापन की शिकायत दूर हो जाती है। आँखों की चुभन, पीड़ा, शूल आदि से भी राहत महसूस होती है।
• आंखों के इलाज में लौकी का छिलका बहुत उपयोगी है। लौकी का छिलका साये में सुखाने के बाद इसे जला लें। इसे खरल में पीस कर बहुत बारीक कर लें। सुबह तीन-तीन सलाई दोनों आँखों में सुरमे की तरह लगाने से कुछ दिनों के बाद आंख संबंधी सारे विकार दूर हो जाते हैं।
• इमली के बीजों की गिरी पत्थर पर घिस कर लेप-सा बनाकर गुहेरी पर लगाने से ठण्डक मिलती है। इससे गुहेरी ठीक भी हो जाती है।

शकरकंद ---


- शकरकंद विटामिन ए का स्रोत है, खासतौर पर नारंगी रंग के शकरकंद में इसकी भरपूर मात्रा होती है। माना जाता है कि भारत में बच्चों एवं महिलाओं और अफ्रीका जैसे गरीब देशों में आमतौर पर पाए जाने वाले विटामिन ए की कमी को दूर करने की इसमें खासी क्षमता होती है।
- नारंगी रंग के शकरकंदों और कुछ दूसरी फसलों से बने उत्पादों में ग्लाईकेमिक तत्त्वों की मात्रा कम होने की वजह से वे लोग भी इन उत्पादों का सेवन कर सकेंगे जो मधुमेह के शिकार हैं। भारत में ऐसे रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
- स्कूल जाने वाले बच्चों के मध्याह्न भोजन कार्यक्रम में कंद से तैयार खाद्य उत्पादों को शामिल करने से उनका पोषण और सुधर सकता है।
- कंद फसलों का इस्तेमाल एथेनॉल (जैवईंधन) तैयार करने में भी किया जा सकता है।
- शकरकंद कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन बी6 और विटामिन सी का अच्छा स्रोत है।रतौंधी तथा बच्चों में वृद्धि रुकने की शिकायत हो तो शकरकंद का सेवन करना चाहिए।
- शकरकंद आँखों की रौशनी बढाता है , मन प्रसन्न करता है , हड्डियों को मज़बूत बनाता है , कैंसर से लड़ने में मदद करता है।
- शकर कंद भूनकर खाना हृदय को सुरक्षित रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकंद उपलब्ध रहें उचित मात्रा में उपयोग करते रहना चाहिये।

जाम या अमरुद


- यह एक बहुत नर्म फल है पर इसके बीज बहुत सख्त होते है।पर ये बीज पेट के लिए बहुत अच्छे , रेचन करने वाले होते है। इसलिए जाम को गोल गोल स्लाइस में काटिए। चारो तरफ का गुदा अच्छी तरह चबा कर खा ले और बीजों को थोड़ा मुंह में चला कर ऐसे ही निगल ले। इसके बीज चबाने से अच्छा है उन्हें ऐसे ही निगलना।
- यह हृदय को मजबूती देने वाला और घबराहट दूर करने वाला है।
- यह मस्तिष्क की ताकत बढाता है।
- यह शरीर की कमजोरी दूर कर ; ऊर्जा देता है।
- यह मन को प्रसन्नता देने वाला फल है।
- यह दाह को कम करता है।
- इसे नमक के साथ खाने से पेट के कीड़े ख़त्म करता है।
- इसकी पत्तियाँ ज्वर नाशक , कफ नाशक और खांसी में लाभदायक है।
- मसूड़ों के दर्द और मुंह की के लिए इसकी पत्तियोंको कूटकर उसमे थोड़ी लौंग का चुरा और सेंधा नमक मिला कर लगाए।
- मुंह के छालों के लिए इसकी पत्तियाँ चबाकर थूक दे या निगल ले।
- इसकी पत्तियों के रस से भांग का नशा कम होता है।
- ज्वर में इसकी पत्तियों , गिलोय और तुलसी को उबालकर काढ़ा ले।
- संग्रहणी या कोलाइटिस या लीवर की परेशानी में इसकी पत्ती , छाल का पावडर और थोड़ी सी सौंठ उबालकर ले।