शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हृदयरोग एवं चिकित्सा (Cardiology and Therapeutics)

आज विश्व में सबसे घातक कोई रोग तेजी से बढ़ता नज़र आ रहा है तो वह है हृदयरोग। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में पूरे विश्व की तुलना में सर्वाधिक हृदय के रोगी होंगे। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को दिल का दौरा पड़ता है।
मनुष्य का हृदय एक मिनट में तकरीबन 70 बार धडकता है। चौबीस घंटों में 1,00,800 बार। इस तरह हमारा हृदय एक दिन में तकरीबन 2000 गैलन रक्त का पम्पिंग करता है।
स्थूल दृष्टि से देखा जाय तो यह मांसपेशियों का बना एक पम्प है। ये मांसपेशियाँ संकुचित होकर रक्त को पम्पिंग करके शरीर के सभी भागों तक पहुँचती है। हृदय की धमनियों में चर्बी जमा होने से रक्तप्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जिससे हृदय को रक्त कम पहुँचता है। हृदय को कार्य करने के लिए आक्सीजन की माँग व पूर्ति के बीच असंतुलन होने से हृदय की पीड़ा होना शुरु हो जाता है। इस प्रकार के हृदय रोग का दौरा पड़ना ही अचानक मृत्यु का मुख्य कारण है।
हृदयरोग के कारणः
युवावस्था में हृदयरोग होने का मुख्य कारण अजीर्ण व धूम्रपान है। धूम्रपान न करने से हृदयरोग की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। फिर भी उच्च रक्तचाप, ज्यादा चरबी, कोलेस्ट्रोल अधिक होना, अति चिंता करना और मधुमेह भी इसके कारण हैं।
मोटापा, मधुमेह, गुर्दों की अकार्यक्षमता, रक्तचाप, मानसिक तनाव, अति परिश्रम, मल-मूत्र की हाजत को रोकने तथा आहार-विहार में प्राकृतिक नियमों की अवहेलना से ही रक्त में वसा का प्रमाण बढ़ जाता है। अतः धमनियों में कोलस्ट्रोल के थक्के जम जाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह का मार्ग तंग हो जाता है। धमनियाँ कड़ी और संकीर्ण हो जाती हैं।
हृदय रोग के लक्षणः
छाती में बायीं ओर या छाती के मध्य में तीव्र पीड़ा होना या दबाव सा लगना, जिसमें कभी पसीना भी आ सकता है और श्वास तेजी से चल सकता है।
कभी ऐसा लगे कि छाती को किसी ने चारों ओर से बाँध दिया हो अथवा छाती पर पत्थर रखा हो।
कभी छाती के बायें या मध्य भाग में दर्द न होकर शरीर के अन्य भागों में दर्द होता है, जैसे की कंधे में, बायें हाथ में, बायीं ओर गरदन में, नीचे के जबड़े में, कोहनी में या कान के नीचे वाले हिस्से में।
कभी पेट में जलन, भारीपन लगना, उलटी होना, कमजोरी सी लगना, ये तमाम लक्षण हृदयरोगियों में देखे जाते हैं।

कभी कभार इस प्रकार का दर्द काम करते समय, चलते समय या भोजनोपरांत भी शुरु हो जाता है, पर शयन करते ही स्वस्थता आ जाती है। किंतु हृदयरोग के आक्रमण पर आराम करने से भी लाभ नहीं होता।
मधुमेह के रोगियों को बिना दर्द हुए भी हृदयरोग का आक्रमण हो सकता है।
हृदयरोग या हृदयरोग के आक्रमण के समय उपरोक्त लक्षणों से सावधान होकर, ईश्वरचिंतन या जप का अभ्यास शुरु करना चाहिए।
हृदयरोग के उपायः
नीचे दी गयी पद्धति के द्वारा हृदय की धमनियों के बीच के अवरोधों को दूर किया जा सकता है।
- हर रोज ध्यान में एक घंटा बैठना, श्वासोछ्वास की कसरतें अर्थात् प्राणायाम, आसन करना, हर रोज आधा घंटा घूमने जाना तथा चरबी न बढ़ाने वाला सात्त्विक आहार लेना अत्यंत लाभकारी है।
- आज के डॉक्टरों की बात मानने से पूर्व यदि हम भगवान शंकर की, भगवान कृष्ण की बात मान लें और उनके अनुसार जीवन बितायें तो हृदयरोग हो ही नहीं सकता।
भगवान शंकर कहते हैं
नास्ति ध्यानं तीर्थम् नास्ति ध्यानसमं यज्ञः।
नास्ति ध्यानसमं दानम् तस्मात् ध्यानं समाचरेत्।।
ध्यान के समान कोई तीर्थ, यज्ञ और दान नहीं है अतः ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भोजन कैसा लेना चाहिए इस बात का वर्णन करते हुए गीता में कहा हैः
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
- दुःखों को नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार और विहार करने वाले का तथा कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य शयन करने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। (गीताः 6-17)
आयु सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्या स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।
- आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं। (गीताः 17-8)
-मंत्रजाप, ध्यान, प्राणायाम, आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने तथा ताँबे की तार में रूद्राक्ष डालकर पहनने से अनेक घातक रोगों से बचाव होता है। उपवास और गोझरण (गोमूत्र) श्रेष्ठ औषध है।
- हृदय रोग से बचने हेतु रोज भोजन से पूर्व अदरक का रस पीना हितकर है। भोजन के साथ लहसुन-धनिया की चटनी भी हितकर है।
हृदयरोगी को अपना उच्च रक्तचाप व कोलेस्ट्रोल नियंत्रण में रखना चाहिए। नियंत्रण के लिए किशमिश (काली द्राक्ष) व दालचीनी का प्रयोग निम्न तरीके से करना चाहिए।
किशमिशः पहले दिन 1 किशमिश रात को गुलाबजल में भिगोकर सुबह खाली पेट चबाकर खा लें, दूसरे दिन दो किशमिश खायें। इस तरह प्रतिदिन 1 किशमिश बढ़ाते हुए 21 वें दिन 21 किशमिश लें फिर 1-1 किशमिश प्रतिदिन कम करते हुए 20, 19, 18 इस तरह 1 किशमिश तक आयें। यह प्रयोग करके थोड़े दिन छोड़ दें। 3 बार यह प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।
दालचीनीः 100 मि.ली. पानी में 2 ग्राम दालचीनी का चूर्ण उबालें। 50 मि.ली. रहने पर ठंडा कर लें। उसमें आधा चम्मच (छोटा) शहद मिलाकर सुबह खाली पेट लें। यदि मधुमेह भी होत शहद नहीं लें। यह प्रयोग 3 माह तक करने से रक्त में कोलेस्ट्रोल का प्रमाण नियंत्रण में रहता है।
उपचारः
लहसुनः 2 कली लहसुन रोजाना दिन में 2 बार सेवन करें। लहसुन की चटनी भी ले सकते हैं। लहसुन हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। इसमें निहित गंधक तत्त्व रक्त के कोलस्ट्रोल को नियंत्रित करता है और उसके जमाव को रोकने में सहायक है।
पुनर्नवाः इसके सेवन से हृदयरोगी को फायदा होता है।
लेपः 10 ग्राम उड़द की छिलकेवाली दाल रात को भिगोयें। प्रातः पीसकर उसमें गाय का ताजा मक्खन 10 ग्राम, एरंड का तेल 10 ग्राम, कूटी हुई गूगल धूप 10 ग्राम मिलाकर लुगदी बना लें। सुबह बायीं ओर हृदयवाले हिस्से पर लेप करके 3 घंटे तक आराम करें। उसके बाद लेप हटाकर दैनिक कार्य कर सकते हैं। यह प्रयोग 1 माह तक करने से हृदय का दर्द ठीक होता है।
गोझरण अर्कः हृदय की धमनियों में अवरोधवाले रोगियों को गोझरण अर्क के सेवन से हृदय के दर्द में राहत मिलती है। अर्क 2 से 6 ढक्कन तक समान मात्रा में पानी मिलाकर ले सकते हैं। सुबह खाली पेट व शाम को भोजन से पहले लें। हृदय दर्द बंद होकर चुस्ती फुर्ती बढ़ती है तथा बेहद खर्चीली बाईपास सर्जरी से मुक्ति मिलती है।
अर्जुन छाल का काढ़ाः अर्जुन की ताजी छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 200 ग्राम दूध में 200 ग्राम पानी मिलाकर हलकी आग पर रखें, फिर 3 ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। उबलते उबलते द्रव्य आधा रह जाय तब उतार लें। थोड़ा ठंडा होने पर छानकर रोगी को पिलायें।
सेवन विधिः रोज 1 बार प्रातः खाली पेट लें उसके बाद डेढ़ दो घंटे तक कुछ न लें। 1 माह तक नित्य सेवन से दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना नहीं रहती है।
पथ्यः हृदयरोगों में अंगूर व नींबू का रस, गाय का दूध, जौ का पानी, कच्चा प्याज, आँवला, सेब आदि। छिलकेवाले साबुत उबले हुए मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, जौ का दलिया, परवल, करेला, गाजर, लहसुन, अदरक, सोंठ, हींग, जीरा, काली मिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, अनार, मीठे अंगूर, काले अंगूर आदि।
अपथ्यः चाय, काफी, घी, तेल, मिर्च-मसाले, दही, पनीर, मावे (खोया) से बनी मिठाइयाँ, टमाटर, आलू, गोभी, बैंगन, मछली, अंडा, फास्टफूड, ठंडा बासी भोजन, भैंस का दूध व घी, फल, भिंडी। गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से बचें। धूम्रपान न करें। मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप आदि को नियंत्रित रखें। हृदय की धड़कनें अधिक व नाड़ी का बल बहुत कम हो जाने पर अर्जुन की छाल जीभ पर रखने मात्र से तुरंत शक्ति प्राप्त होने लगती है।
टिप्पणीः अनुभव से ऐसा पाया गया है कि अधिकतर रोगी, जिन्हें दिल का मरीज घोषित कर दिया जाता है, वे दिल के मरीज नहीं, अपितु वात प्रकोपजन्य सीने के दर्द के शिकार होते हैं। आई.सी.सी.यू. में दाखिल कई मरीजों को अंग्रेजी दवाइयों से नहीं, केवल संतकृपा चूर्ण, हिंगादिहरड़, शंखवटी, लवणभास्कर चूर्ण आदि वायु-प्रकोप को शांत करने वाली औषधियों से लाभ हो जाता है तथा वे हृदयरोग होने के भ्रम से बाहर आ जाते हैं और स्वस्थ हो जाते है !

सोमवार, 24 मार्च 2014

संतरे खाएं तो छिलके न फेंके क्योंकि इन रोगों की ये है जबरदस्त दवा

जब हम संतरे को खाते हैं तो सामान्यत: हम उसके छिलके को फेंक देते हैं या उसके छिलके का उपयोग एक दूसरे की आंखों में डालने व रुलाने के लिए मस्ती में करते हैं जो एक तरह से एक उपयोगी चीज का नुकसान करना ही कहलाएगा। जी हां आपको ये सुनकर आश्चर्य जरूर हो रहा होगा लेकिन यह सच है।
संतरे का छिलका इतना उपयोगी है कि जब आप इसके गुण जान जाएंगे तो कभी इसके छिलके फेंकना नहीं चाहेंगे।
बालों को खूबसूरत बनाता है- अगर आपके बाल एकदम रफ और बेजान दिखाई देते हैं तो संतरे के छिलके आपके लिए वरदान साबित हो सकते हैं। संतरे के छिलकों को पीसकर बालों में लगाकर कुछ देर रखें और फिर बाल धो लें। बाल चमकीले और मुलायम हो जाएंगे। संतरे के छिलकों को पीस कर उसमे गुलाब जल मिलाकर चहरे पर लगाने से दाग व धब्बे मिटते हैं।
स्किन को ग्लोइंग बनाते हैं- संतरे के छिलके में क्लीजिंग, एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो कि पिंपल और एक्ने से लडऩे में सहायक होते हैं। संतरे के छिलके को सुखाकर पीसकर उसे दही मिलाकर स्किन पर लगाने से स्किन ग्लोइंग व स्मूथ बनती है। संतरे के छिलकों को बेसन में मिलाकर लगाना ऑइली स्किन वालों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है और पिंपल्स को खत्म कर देता है।
कोलेस्टॉल के रोगियों के लिए फायदेमंद है - एक अध्ययन के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को कोलेस्ट्रॉल की प्रॉब्लम हो तो ऐसे में संतरे के छिलके उपयोगी साबित हो सकते हैं। संतरे के छिलको में ऐसा गुण पाया जाता है जिससे उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर है जो मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों को फायदा हो सकता है। साथ ही ये कैंसर व हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याओं में भी विशेष रूप से लाभदायक है।
पाचन शक्ति बढ़ाता है- इसके छिलके में पाचनशक्ति बढ़ाने की क्षमता होती है। यह पाचन में सुधार, गैस, उल्टी, हार्ट बर्न और अम्लीय डकार को दूर करने में मदद करता है। यह भूख बढाता है और मतली से राहत दिलाने का काम करता है साथ ही संतरे का छिलका कृमि का नाश करने वाला व बुखार को मिटाने वाला भी होता है। इसलिए इन सभी रोगों के रोगियों को संतरे का छिलका पीसकर खिलाने पर फायदा होता है।
अनिद्रा की समस्या को दूर करता है- नारंगी के छिलके में एक विशेष प्रकार की गंध वाला तेल पाया जाता है। जी हां नारंगी के छिलके में एक विशेष प्रकार की गंध वाला तेल पाया जाता है। इस तेल का उपयोग तंत्रिकाओं को शांत करने व गहरी नींद के लिए किया जाता है। नहाने के पानी में इसका दो से तीन बूंद तेल डालिए और फिर देखिए कितनी मीठी नींद आती है।

सोमवार, 17 मार्च 2014

मुलेठी , ज्येष्ठी मधु

मुलेठी , ज्येष्ठी मधु ---
मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे ज्येष्ठीमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है। 
मुलेठी के गुण -
- यह ठंडी प्रकृति की होती है और पित्त का शमन करती है .
- मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
- अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
- गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
- मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से वे अपनी सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
- लगभग एक महीने तक , आधा चम्मच मुलेठी का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मासिक सम्बन्धी सभी रोग दूर होते है.
- फोड़े होने पर मुलेठी का लेप लगाने से जल्दी ठीक हो जाते है.
- रोज़ ६ ग्रा. मुलेठी चूर्ण , ३० मि.ली. दूध के साथ पिने से शरीर में ताकत आती है.
- लगभग ४ ग्रा. मुलेठी का चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है.
- इसके आधा ग्राम रोजाना सेवन से खून में वृद्धि होती है.
- जलने पर मुलेठी और चन्दन के लेप से शीतलता मिलती है.
- इसके चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
- मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से कान का दर्द और सूजन ठीक होता है. 
- उलटी होने पर मुलेठी का टुकडा मुंह में रखने पर लाभ होता है.
- मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।
- मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
- खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
- हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
- मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है। 
- ये एक प्रकार की एंटीबायोटिक भी है इसमें बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटो में भी लाभदायक होती है। 
- मुलेठी के चूर्ण से आँखों की शक्ति भी बढ़ती है सुबह तीन या चार ग्राम खाना चाहिये। 
- यदि भूख न लगती हो तो एक छोटा टुकड़ा मुलेठी कुछ देर चूसे, दिन में ३,४, बार इस प्रक्रिया को दोहरा ले ,भूख खुल जाएगी .
- कोई भी समस्या न हो तो भी कभी-कभी मुलेठी का सेवन कर लेना चाहिए आँतों के अल्सर ,कैंसर का खतरा कम हो जाता है तथा पाचनक्रिया भी एकदम ठीक रहती है
मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे ज्येष्ठीमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है।
मुलेठी के गुण -
- यह ठंडी प्रकृति की होती है और पित्त का शमन करती है .
- मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
- अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
- गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
- मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से वे अपनी सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
- लगभग एक महीने तक , आधा चम्मच मुलेठी का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मासिक सम्बन्धी सभी रोग दूर होते है.
- फोड़े होने पर मुलेठी का लेप लगाने से जल्दी ठीक हो जाते है.
- रोज़ ६ ग्रा. मुलेठी चूर्ण , ३० मि.ली. दूध के साथ पिने से शरीर में ताकत आती है.
- लगभग ४ ग्रा. मुलेठी का चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है.
- इसके आधा ग्राम रोजाना सेवन से खून में वृद्धि होती है.
- जलने पर मुलेठी और चन्दन के लेप से शीतलता मिलती है.
- इसके चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
- मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से कान का दर्द और सूजन ठीक होता है.
- उलटी होने पर मुलेठी का टुकडा मुंह में रखने पर लाभ होता है.
- मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।
- मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
- खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
- हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
- मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है।
- ये एक प्रकार की एंटीबायोटिक भी है इसमें बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटो में भी लाभदायक होती है।
- मुलेठी के चूर्ण से आँखों की शक्ति भी बढ़ती है सुबह तीन या चार ग्राम खाना चाहिये।
- यदि भूख न लगती हो तो एक छोटा टुकड़ा मुलेठी कुछ देर चूसे, दिन में ३,४, बार इस प्रक्रिया को दोहरा ले ,भूख खुल जाएगी .
- कोई भी समस्या न हो तो भी कभी-कभी मुलेठी का सेवन कर लेना चाहिए आँतों के अल्सर ,कैंसर का खतरा कम हो जाता है तथा पाचनक्रिया भी एकदम ठीक रहती है

मधुमालती



पेड़ पौधे भगवान की बनाई हुई दवाई की जीवित फैक्टरियां है . अपने आस पास ही बाग़ बगीचों में नज़र दौडाएं तो कई लाभदायक जड़ी बूटियाँ मिल जाएंगी . मधुमालती की बेल कई घरों में लगी होंगी इसके फूल और पत्तियों का रस मधुमेह के लिए बहुत अच्छा है . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है . इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है .
प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .

शनिवार, 15 मार्च 2014

रंग ही नहीं औषधि भी हैं टेसू के फूल
पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू , किंशुक, केसू )
बसंत शुरू होने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों तथा जंगलों में पलाश फूल खिलना शुरू हो जाते हैं। पलाश फूलों से छठा सिंदूरी हो जाती है। पेड़ों पर पलाश फूल होली के कुछ दिन बाद तक रहते हैं जिसके बाद झडऩा शुरू हो जाते हैं। पलाश के फूल ही नहीं इसके पत्ते, टहनी, फली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा आयुर्वेदिक तथा धार्मिक महत्व है। देश में प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद इसका व्यवसायिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। आयुर्वेद की माने तो होली के लिए रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। यही नहीं पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है।
कुछ वर्षों पूर्व तक होली मात्र पलाश फूल से बने प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी। ये प्राकृतिक रंग त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते थे लेकिन बाजार में केमिकल वाले रंग पहुंच चुके हैं तथा अब प्राकृतिक रंगों का उपयोग नहीं के बराबर होता है। पलाश फूलों से पहले कपड़ों को भी रंगा जाता था। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।
पलाश के फूल की उपयोगिता को कई लोग जानते नहीं है और जिसके कारण ये बेशकीमती फूल पेड़ से नीचे गिरकर नष्ट हो जाते हैं। पलाश के पेड़ के पत्ते भी बेहद उपयोगी हैं। पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोना पत्तल बनाने के लिए करते हैं। पलाश के जड़ से रस्सी बनाकर धान की फसल को भारा बांधने के उपयोग में लाया जाता हैं। पलाश की फली कृमीनाशक है |
आधुनिकता के इस युग में भी ब्रज क्षेत्र में टेसू से होली खेलने की परंपरा है। रासायनिक रंगों के मुकाबले ये ज्यादा सुरक्षित हैं और त्वचा रोग के लिए औषधितुल्य होते हैं।
आधा किलो टेसू के फूल पन्द्रह लीटर पानी में लिए बहुत है।बृज के मथुरा, आगरा, हाथरस, दाऊजी, गोकुल आदि क्षेत्र में इसका जबरदस्त प्रचलन है। नंदगांव बरसाने की लट्ठमार होली हो या फिर दाऊजी का हुरंगा, इनमें टेसू के फूलों का जमकर प्रयोग होता है। बिहारी जी के मंदिर में खेली जाने वाली होली में भी टेसू के फूलों का प्रचलन है।त्वचा रोग विशेषज्ञ का कहना है कि इससे एलर्जी नहीं होती है जबकि केमिकल वाले रंग-गुलाल त्वचा के लिए हानिकारक है। इनसे शरीर पर जलन होती है।
टेसू के फूल में औषधि के बहुत से गुण है। टेसू के फूल त्वचा रोग में लाभकारी है। टेसू के फूल को घिस कर चिकन पाक्स के रोगियों को लगाया जा सकता है।

टेसू का फूल असाध्य चर्म रोगों में भी लाभप्रद होता है। हल्के गुनगुने पानी में डालकर सूजन वाली जगह धोने से सूजन समाप्त होती है।
चर्मरोग के लिये टेसू और नीबू

टेसू के फूल को सुखाकर चूर्ण बना लें। इसे नीबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है

गुरुवार, 13 मार्च 2014

गुलकंद (Gulkand) से उपचार एव बनाने की विधि::


गुलकंद एक आयुर्वेदिक टॉनिक है। गुलाब के फूल की भीनी-भीनी खुशबू और पंखुड़ियों के औषधीय गुण से भरपूर गुलकंद को नियमित खाने पर पित्त के दोष दूर होते हैं तथा इससे कफ में भी राहत मिलती है। गर्मियों के मौसम में गुलकंद कई तरह के फायदे पहुंचाता है। गुलकंद कील मुहांसो को दूर करता है अरु रक्त शुद्ध करता है, हाजमा दुरुस्त रखता है और आलस्य दूर करता है। गुलकंद शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है और कब्ज को भी दूर करता है।सीने की जलन और हड्डियो के रोगो में लाभकारी है, सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुलकंद खाने पर मसूढ़ों में सूजन या खून आने की समस्या दूर हो जाती है। पीरियड के दौरान गुलकंद खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है। मुंह का अल्सर दूर करने के लिए भी गुलकंद खाना फायदेमंद होता है।

गुलकंद बनाने की विधि::

समाग्री:: ताजी गुलाब की पंखुडियां, बराबर मात्रा में चीनी, एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ

विधि:: गुलाब की ताजी व खुली पंखुडियॉं लें ,अब कांच की बडे मुंह की बोतल लें इसमें थोडी पंखुडियां डालें अब चीनी डालें फिर पंखुडियां फिर चीनी अब एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ डालें फिर उपर से पंखुडियां डालें फिर चीनी इस तरह से डब्बा भर जाने तक करते रहें इसे धूप में रख दें आठ दस दिन के लिये बीच- बीच में इसे चलाते रहें चीनी पानी छोडेगी और उसी चीनी पानी में पंखुडियां गलेंगी। (अलग से पानी नहीं डालना है) पंखुडियां पूरी तरह गल जाय यानि सब एक सार हो जाय । लीजिये तैयार हो गया आपका गुलकंद।


मंगलवार, 11 मार्च 2014

मुंहासों (Pimpal) के लिए घरेलू नुस्खे -


  1. नीम : यह त्वचा में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है। इसके प्रयोग से मुंहासे में जादू जैसा लाभ होता है। चार-पांच नीम की पत्तियों को पीसकर मुलतानी मिट्टी में मिलाकर लगाएं, सूखने पर गरम पानी से धो लें।
  2. दही में कुछ बूंदें शहद की मिलाकर उसे चेहरे पर लेप करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में मुहांसे दूर हो जाते हैं।
  3. जामुन की गुठली को पानी में घिसकर चेहरे पर लगाने से मुहासे दूर होते हैं।
  4. नीम के पेड़ की छाल को घिसकर मुहांसों पर लगाने से भी मुहांसे घटते हैं।
  5. तुलसी व पुदीने की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें तथा थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से भी मुहांसों से निजात मिलती है।
  6. 1 चम्मच टमाटर का रस, 1 छोटा चम्मच मुल्तानी मिट्टी और 1 चम्मच पिसी हुई मसूर की दाल को थोड़े से गुलाबजल में मिलाकर चेहरे पर लगा लें और सूखने के बाद ठण्डे पानी से धो लें।
  7. जैतून के तेल को रोज रात में सोते समय चेहरे पर लगाएं ऐसा करने से मुंहासे और चेहरे पर हो रही फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
  8. नीबू के रस में गुलाबजल मिलाकर चेहरे पर लगाएं। तीस मिनट बाद चेहरा पानी से धो लें।
  9. आलू उबाल कर छिलके छील लें और इसके छिलकों को चेहरे पर रगड़ें, मुंहासे ठीक हो जाएंगे।