मंगलवार, 17 जून 2014

पीपल (Pipal)

पीपल 
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |

बुधवार, 4 जून 2014

कढ़ी पत्ता या मीठी नीम


कढ़ी पत्ता या मीठी नीम

                अक्सर हम भोजन में से कढ़ी पत्ता निकाल कर अलग कर देते है | इससे हमें उसकी खुशबु तो मिलती है पर उसके गुणों का लाभ नहीं मिल पाता |कढ़ी पत्ते को धो कर छाया में सुखा कर उसका पावडर इस्तेमाल करने से बच्चे और बड़े भी भी इसे आसानी से खा लेते है ,इस पावडर को हम छाछ और निम्बू पानी में भी मिला सकते है | इसे हम मसालों में , भेल में भी डाल सकते है | इसकी छाल भी औषधि है | हमें अपने घरों में इसका पौधा लगाना चाहिए | 
  1. - कढ़ी पत्ता पाचन के लिए अच्छा होता है ,यह डायरिया , डिसेंट्री,पाइल्स , मन्दाग्नि में लाभकारी होता है | यह मृदु रेचक होता है | 
  2. - यह बालों के लिए बहुत उत्तम टॉनिक है , कढ़ी पत्ता बालों को सफ़ेद होने से और झड़ने से रोकता है | 
  3. - इसके पत्तों का पेस्ट बालों में लगाने से जुओं से छुटकारा मिलता है | 
  4. - कढ़ी पत्ता पेन्क्रीआज़ के बीटा सेल्स को एक्टिवेट कर मधुमेह को नियंत्रित करता है | 
  5. - हरे पत्ते होने से आयरन , जिंक ,कॉपर , केल्शियम ,विटामिन ए और बी , अमीनो एसिड ,फोलिक एसिड आदि तो इसमें होता ही है | 
  6. - इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होते है जो बुढापे को दूर रखते है और कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने नहीं देते .
  7. - जले और कटे स्थान पर इसके पत्ते पीस कर लगाने से लाभ होता है .
  8. - जहरीले कीड़े काटने पर इसके फलों के रस को निम्बू के रस के साथ मिलाकर लगाने से लाभ होता है | 
  9. - यह किडनी के लिए लाभकारी होता है | 
  10. - यह आँखों की बीमारियों में लाभकारी होता है इसमें मौजूद एंटी ओक्सीडेंट केटरेक्ट को शुरू होने से          रोकते है ,यह नेत्र ज्योति को बढाता है .
  11. - यह कोलेस्ट्रोल कम करता है | 
  12. - यह इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है | 
  13. - वजन कम करने के लिए रोजाना कुछ मीठी नीम की पत्तियाँ चबाये| 
  14. प्रतिदिन भोजन में कढ़ी पत्ते को दाल , सब्ज़ी में डालकर या चटनी बनाकर प्रयोग किया जा सकता है , जिस प्रकार दक्षिण भारत में किया जाता है |

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

पुदीना :_

गर्मी में पुदीना खाने का टेस्ट बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ये एक बहुत अच्छी औषधि भी है साथ ही इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि पुदीने का पौधा कहीं भी किसी भी जमीन, यहां तक कि गमले में भी आसानी से उग जाता है। यह गर्मी झेलने की शक्ति रखता है। इसे किसी भी उर्वरक की आवश्यकता नहीं पडती है।
थोड़ी सी मिट्टी और पानी इसके विकास के लिए पर्याप्त है। पुदीना को किसी भी समय उगाया जा सकता है। इसकी पत्तियों को ताजा तथा सुखाकर प्रयोग में लाया जा सकता है।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं पुदीने के कुछ लाजवाब गुण
1.मुंहासे दूर करता है
2.श्वांस संबंधी परेशानियों में रामबाण
3.कैंसर में भी है उपयोगी
4. मुंह की दुर्गंध मिटाता है
5. खांसी खत्म करता है
6. गर्मी दूर कर ठंडक पहुंचाता है
7.बुखार में राहत देता है
- हरा पुदीना पीसकर उसमें नींबू के रस की दो-तीन बूँद डालकर चेहरे पर लेप करें। कुछ देर लगा रहने दें। बाद में चेहरा ठंडे पानी से धो डालें।
- कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे तथा चेहरा निखर जाएगा।
- हरे -पुदीने की 20-25 पत्तियां, मिश्री व सौंफ 10-10 ग्राम और कालीमिर्च 2-3 दाने इन सबको पीस लें और सूती, साफ कपड़े में रखकर निचोड़ लें।
-इस रस की एक चम्मच मात्रा लेकर एक कप कुनकुने पानी में डालकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।
- एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं।
- इतना ही नहीं अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और -आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।
- एक रिसर्च से पता चला है कि यह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी में लाभकारी है ।
- इसलिए हमें अपने घर के बगीचे में पुदीने का पौधा जरूर लगाना चाहिए,पुदीने का ताजा रस शहद के साथ सेवन करने से ज्वर दूर हो जाता है।
- पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे।
- नकसीर आने पर प्याज और पुदीने का रस मिलाकर नाक में डाल देने से नकसीर के रोगियों को बहुत लाभ होता है।
- सलाद में इसका उपयोग स्वास्थ्यवर्धक है। प्रतिदिन इसकी पत्ती चबाई जाए तो दुत क्षय, मसूडों से रक्त निकलना, पायरिया आदि रोग कम हो जाते हैं। यह एंटीसेप्टिक की तरह काम करता है और दांतों तथा मसूडों को जरूरी पोषक तत्व पहुंचाता है। एक गिलास पानी में पुदीने की चार पत्तियों को उबालें। ठंडा होने पर फ्रिज में रख दें। इस पानी से कुल्ला करने पर मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है।
- एक टब में पानी भरकर उसमें कुछ बूंद पुदीने का तेल डालकर यदि उसमें पैर रखे जाएं तो थकान से राहत मिलती है और बिवाइयों के लिए बहुत लाभकारी है।पानी में नींबू का रस, पुदीना और काला नमक मिलाकर पीने से मलेरिया के बुखार में राहत मिलती है। इसके अलावा हकलाहट दूर करने के लिए पुदीने की पत्तियों में काली मिर्च पीस लें तथा सुबह शाम एक चम्मच सेवन करें।पुदीने की चाय में दो चुटकी नमक मिलाकर पीने से खांसी में लाभ मिलता है। हैजे में पुदीना, प्याज का रस, नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
- हरे पुदीने की 20-25 पत्तियां, मिश्री व सौंफ 10-10 ग्राम और कालीमिर्च 2-3 दाने इन सबको पीस लें और सूती, साफ कपड़े में रखकर निचोड़ लें। इस रस की एक चम्मच मात्रा लेकर एक कप कुनकुने पानी में डालकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है। इतना ही नहीं अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।
- पुदीने का ताजा रस शहद के साथ सेवन करने से ज्वर दूर हो जाता है तथा न्यूमोनिया से होने वाले विकार भी नष्ट हो जाते हैं। पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें। नकसीर आने पर प्याज और पुदीने का रस मिलाकर नाक में डाल देने से नकसीर के रोगियों को बहुत लाभ होता है।

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हृदयरोग एवं चिकित्सा (Cardiology and Therapeutics)

आज विश्व में सबसे घातक कोई रोग तेजी से बढ़ता नज़र आ रहा है तो वह है हृदयरोग। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में पूरे विश्व की तुलना में सर्वाधिक हृदय के रोगी होंगे। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को दिल का दौरा पड़ता है।
मनुष्य का हृदय एक मिनट में तकरीबन 70 बार धडकता है। चौबीस घंटों में 1,00,800 बार। इस तरह हमारा हृदय एक दिन में तकरीबन 2000 गैलन रक्त का पम्पिंग करता है।
स्थूल दृष्टि से देखा जाय तो यह मांसपेशियों का बना एक पम्प है। ये मांसपेशियाँ संकुचित होकर रक्त को पम्पिंग करके शरीर के सभी भागों तक पहुँचती है। हृदय की धमनियों में चर्बी जमा होने से रक्तप्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जिससे हृदय को रक्त कम पहुँचता है। हृदय को कार्य करने के लिए आक्सीजन की माँग व पूर्ति के बीच असंतुलन होने से हृदय की पीड़ा होना शुरु हो जाता है। इस प्रकार के हृदय रोग का दौरा पड़ना ही अचानक मृत्यु का मुख्य कारण है।
हृदयरोग के कारणः
युवावस्था में हृदयरोग होने का मुख्य कारण अजीर्ण व धूम्रपान है। धूम्रपान न करने से हृदयरोग की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। फिर भी उच्च रक्तचाप, ज्यादा चरबी, कोलेस्ट्रोल अधिक होना, अति चिंता करना और मधुमेह भी इसके कारण हैं।
मोटापा, मधुमेह, गुर्दों की अकार्यक्षमता, रक्तचाप, मानसिक तनाव, अति परिश्रम, मल-मूत्र की हाजत को रोकने तथा आहार-विहार में प्राकृतिक नियमों की अवहेलना से ही रक्त में वसा का प्रमाण बढ़ जाता है। अतः धमनियों में कोलस्ट्रोल के थक्के जम जाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह का मार्ग तंग हो जाता है। धमनियाँ कड़ी और संकीर्ण हो जाती हैं।
हृदय रोग के लक्षणः
छाती में बायीं ओर या छाती के मध्य में तीव्र पीड़ा होना या दबाव सा लगना, जिसमें कभी पसीना भी आ सकता है और श्वास तेजी से चल सकता है।
कभी ऐसा लगे कि छाती को किसी ने चारों ओर से बाँध दिया हो अथवा छाती पर पत्थर रखा हो।
कभी छाती के बायें या मध्य भाग में दर्द न होकर शरीर के अन्य भागों में दर्द होता है, जैसे की कंधे में, बायें हाथ में, बायीं ओर गरदन में, नीचे के जबड़े में, कोहनी में या कान के नीचे वाले हिस्से में।
कभी पेट में जलन, भारीपन लगना, उलटी होना, कमजोरी सी लगना, ये तमाम लक्षण हृदयरोगियों में देखे जाते हैं।

कभी कभार इस प्रकार का दर्द काम करते समय, चलते समय या भोजनोपरांत भी शुरु हो जाता है, पर शयन करते ही स्वस्थता आ जाती है। किंतु हृदयरोग के आक्रमण पर आराम करने से भी लाभ नहीं होता।
मधुमेह के रोगियों को बिना दर्द हुए भी हृदयरोग का आक्रमण हो सकता है।
हृदयरोग या हृदयरोग के आक्रमण के समय उपरोक्त लक्षणों से सावधान होकर, ईश्वरचिंतन या जप का अभ्यास शुरु करना चाहिए।
हृदयरोग के उपायः
नीचे दी गयी पद्धति के द्वारा हृदय की धमनियों के बीच के अवरोधों को दूर किया जा सकता है।
- हर रोज ध्यान में एक घंटा बैठना, श्वासोछ्वास की कसरतें अर्थात् प्राणायाम, आसन करना, हर रोज आधा घंटा घूमने जाना तथा चरबी न बढ़ाने वाला सात्त्विक आहार लेना अत्यंत लाभकारी है।
- आज के डॉक्टरों की बात मानने से पूर्व यदि हम भगवान शंकर की, भगवान कृष्ण की बात मान लें और उनके अनुसार जीवन बितायें तो हृदयरोग हो ही नहीं सकता।
भगवान शंकर कहते हैं
नास्ति ध्यानं तीर्थम् नास्ति ध्यानसमं यज्ञः।
नास्ति ध्यानसमं दानम् तस्मात् ध्यानं समाचरेत्।।
ध्यान के समान कोई तीर्थ, यज्ञ और दान नहीं है अतः ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भोजन कैसा लेना चाहिए इस बात का वर्णन करते हुए गीता में कहा हैः
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
- दुःखों को नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार और विहार करने वाले का तथा कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य शयन करने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। (गीताः 6-17)
आयु सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्या स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।
- आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं। (गीताः 17-8)
-मंत्रजाप, ध्यान, प्राणायाम, आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने तथा ताँबे की तार में रूद्राक्ष डालकर पहनने से अनेक घातक रोगों से बचाव होता है। उपवास और गोझरण (गोमूत्र) श्रेष्ठ औषध है।
- हृदय रोग से बचने हेतु रोज भोजन से पूर्व अदरक का रस पीना हितकर है। भोजन के साथ लहसुन-धनिया की चटनी भी हितकर है।
हृदयरोगी को अपना उच्च रक्तचाप व कोलेस्ट्रोल नियंत्रण में रखना चाहिए। नियंत्रण के लिए किशमिश (काली द्राक्ष) व दालचीनी का प्रयोग निम्न तरीके से करना चाहिए।
किशमिशः पहले दिन 1 किशमिश रात को गुलाबजल में भिगोकर सुबह खाली पेट चबाकर खा लें, दूसरे दिन दो किशमिश खायें। इस तरह प्रतिदिन 1 किशमिश बढ़ाते हुए 21 वें दिन 21 किशमिश लें फिर 1-1 किशमिश प्रतिदिन कम करते हुए 20, 19, 18 इस तरह 1 किशमिश तक आयें। यह प्रयोग करके थोड़े दिन छोड़ दें। 3 बार यह प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।
दालचीनीः 100 मि.ली. पानी में 2 ग्राम दालचीनी का चूर्ण उबालें। 50 मि.ली. रहने पर ठंडा कर लें। उसमें आधा चम्मच (छोटा) शहद मिलाकर सुबह खाली पेट लें। यदि मधुमेह भी होत शहद नहीं लें। यह प्रयोग 3 माह तक करने से रक्त में कोलेस्ट्रोल का प्रमाण नियंत्रण में रहता है।
उपचारः
लहसुनः 2 कली लहसुन रोजाना दिन में 2 बार सेवन करें। लहसुन की चटनी भी ले सकते हैं। लहसुन हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। इसमें निहित गंधक तत्त्व रक्त के कोलस्ट्रोल को नियंत्रित करता है और उसके जमाव को रोकने में सहायक है।
पुनर्नवाः इसके सेवन से हृदयरोगी को फायदा होता है।
लेपः 10 ग्राम उड़द की छिलकेवाली दाल रात को भिगोयें। प्रातः पीसकर उसमें गाय का ताजा मक्खन 10 ग्राम, एरंड का तेल 10 ग्राम, कूटी हुई गूगल धूप 10 ग्राम मिलाकर लुगदी बना लें। सुबह बायीं ओर हृदयवाले हिस्से पर लेप करके 3 घंटे तक आराम करें। उसके बाद लेप हटाकर दैनिक कार्य कर सकते हैं। यह प्रयोग 1 माह तक करने से हृदय का दर्द ठीक होता है।
गोझरण अर्कः हृदय की धमनियों में अवरोधवाले रोगियों को गोझरण अर्क के सेवन से हृदय के दर्द में राहत मिलती है। अर्क 2 से 6 ढक्कन तक समान मात्रा में पानी मिलाकर ले सकते हैं। सुबह खाली पेट व शाम को भोजन से पहले लें। हृदय दर्द बंद होकर चुस्ती फुर्ती बढ़ती है तथा बेहद खर्चीली बाईपास सर्जरी से मुक्ति मिलती है।
अर्जुन छाल का काढ़ाः अर्जुन की ताजी छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 200 ग्राम दूध में 200 ग्राम पानी मिलाकर हलकी आग पर रखें, फिर 3 ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। उबलते उबलते द्रव्य आधा रह जाय तब उतार लें। थोड़ा ठंडा होने पर छानकर रोगी को पिलायें।
सेवन विधिः रोज 1 बार प्रातः खाली पेट लें उसके बाद डेढ़ दो घंटे तक कुछ न लें। 1 माह तक नित्य सेवन से दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना नहीं रहती है।
पथ्यः हृदयरोगों में अंगूर व नींबू का रस, गाय का दूध, जौ का पानी, कच्चा प्याज, आँवला, सेब आदि। छिलकेवाले साबुत उबले हुए मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, जौ का दलिया, परवल, करेला, गाजर, लहसुन, अदरक, सोंठ, हींग, जीरा, काली मिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, अनार, मीठे अंगूर, काले अंगूर आदि।
अपथ्यः चाय, काफी, घी, तेल, मिर्च-मसाले, दही, पनीर, मावे (खोया) से बनी मिठाइयाँ, टमाटर, आलू, गोभी, बैंगन, मछली, अंडा, फास्टफूड, ठंडा बासी भोजन, भैंस का दूध व घी, फल, भिंडी। गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से बचें। धूम्रपान न करें। मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप आदि को नियंत्रित रखें। हृदय की धड़कनें अधिक व नाड़ी का बल बहुत कम हो जाने पर अर्जुन की छाल जीभ पर रखने मात्र से तुरंत शक्ति प्राप्त होने लगती है।
टिप्पणीः अनुभव से ऐसा पाया गया है कि अधिकतर रोगी, जिन्हें दिल का मरीज घोषित कर दिया जाता है, वे दिल के मरीज नहीं, अपितु वात प्रकोपजन्य सीने के दर्द के शिकार होते हैं। आई.सी.सी.यू. में दाखिल कई मरीजों को अंग्रेजी दवाइयों से नहीं, केवल संतकृपा चूर्ण, हिंगादिहरड़, शंखवटी, लवणभास्कर चूर्ण आदि वायु-प्रकोप को शांत करने वाली औषधियों से लाभ हो जाता है तथा वे हृदयरोग होने के भ्रम से बाहर आ जाते हैं और स्वस्थ हो जाते है !

सोमवार, 24 मार्च 2014

संतरे खाएं तो छिलके न फेंके क्योंकि इन रोगों की ये है जबरदस्त दवा

जब हम संतरे को खाते हैं तो सामान्यत: हम उसके छिलके को फेंक देते हैं या उसके छिलके का उपयोग एक दूसरे की आंखों में डालने व रुलाने के लिए मस्ती में करते हैं जो एक तरह से एक उपयोगी चीज का नुकसान करना ही कहलाएगा। जी हां आपको ये सुनकर आश्चर्य जरूर हो रहा होगा लेकिन यह सच है।
संतरे का छिलका इतना उपयोगी है कि जब आप इसके गुण जान जाएंगे तो कभी इसके छिलके फेंकना नहीं चाहेंगे।
बालों को खूबसूरत बनाता है- अगर आपके बाल एकदम रफ और बेजान दिखाई देते हैं तो संतरे के छिलके आपके लिए वरदान साबित हो सकते हैं। संतरे के छिलकों को पीसकर बालों में लगाकर कुछ देर रखें और फिर बाल धो लें। बाल चमकीले और मुलायम हो जाएंगे। संतरे के छिलकों को पीस कर उसमे गुलाब जल मिलाकर चहरे पर लगाने से दाग व धब्बे मिटते हैं।
स्किन को ग्लोइंग बनाते हैं- संतरे के छिलके में क्लीजिंग, एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो कि पिंपल और एक्ने से लडऩे में सहायक होते हैं। संतरे के छिलके को सुखाकर पीसकर उसे दही मिलाकर स्किन पर लगाने से स्किन ग्लोइंग व स्मूथ बनती है। संतरे के छिलकों को बेसन में मिलाकर लगाना ऑइली स्किन वालों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है और पिंपल्स को खत्म कर देता है।
कोलेस्टॉल के रोगियों के लिए फायदेमंद है - एक अध्ययन के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को कोलेस्ट्रॉल की प्रॉब्लम हो तो ऐसे में संतरे के छिलके उपयोगी साबित हो सकते हैं। संतरे के छिलको में ऐसा गुण पाया जाता है जिससे उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर है जो मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों को फायदा हो सकता है। साथ ही ये कैंसर व हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याओं में भी विशेष रूप से लाभदायक है।
पाचन शक्ति बढ़ाता है- इसके छिलके में पाचनशक्ति बढ़ाने की क्षमता होती है। यह पाचन में सुधार, गैस, उल्टी, हार्ट बर्न और अम्लीय डकार को दूर करने में मदद करता है। यह भूख बढाता है और मतली से राहत दिलाने का काम करता है साथ ही संतरे का छिलका कृमि का नाश करने वाला व बुखार को मिटाने वाला भी होता है। इसलिए इन सभी रोगों के रोगियों को संतरे का छिलका पीसकर खिलाने पर फायदा होता है।
अनिद्रा की समस्या को दूर करता है- नारंगी के छिलके में एक विशेष प्रकार की गंध वाला तेल पाया जाता है। जी हां नारंगी के छिलके में एक विशेष प्रकार की गंध वाला तेल पाया जाता है। इस तेल का उपयोग तंत्रिकाओं को शांत करने व गहरी नींद के लिए किया जाता है। नहाने के पानी में इसका दो से तीन बूंद तेल डालिए और फिर देखिए कितनी मीठी नींद आती है।

सोमवार, 17 मार्च 2014

मुलेठी , ज्येष्ठी मधु

मुलेठी , ज्येष्ठी मधु ---
मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे ज्येष्ठीमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है। 
मुलेठी के गुण -
- यह ठंडी प्रकृति की होती है और पित्त का शमन करती है .
- मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
- अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
- गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
- मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से वे अपनी सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
- लगभग एक महीने तक , आधा चम्मच मुलेठी का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मासिक सम्बन्धी सभी रोग दूर होते है.
- फोड़े होने पर मुलेठी का लेप लगाने से जल्दी ठीक हो जाते है.
- रोज़ ६ ग्रा. मुलेठी चूर्ण , ३० मि.ली. दूध के साथ पिने से शरीर में ताकत आती है.
- लगभग ४ ग्रा. मुलेठी का चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है.
- इसके आधा ग्राम रोजाना सेवन से खून में वृद्धि होती है.
- जलने पर मुलेठी और चन्दन के लेप से शीतलता मिलती है.
- इसके चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
- मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से कान का दर्द और सूजन ठीक होता है. 
- उलटी होने पर मुलेठी का टुकडा मुंह में रखने पर लाभ होता है.
- मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।
- मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
- खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
- हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
- मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है। 
- ये एक प्रकार की एंटीबायोटिक भी है इसमें बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटो में भी लाभदायक होती है। 
- मुलेठी के चूर्ण से आँखों की शक्ति भी बढ़ती है सुबह तीन या चार ग्राम खाना चाहिये। 
- यदि भूख न लगती हो तो एक छोटा टुकड़ा मुलेठी कुछ देर चूसे, दिन में ३,४, बार इस प्रक्रिया को दोहरा ले ,भूख खुल जाएगी .
- कोई भी समस्या न हो तो भी कभी-कभी मुलेठी का सेवन कर लेना चाहिए आँतों के अल्सर ,कैंसर का खतरा कम हो जाता है तथा पाचनक्रिया भी एकदम ठीक रहती है
मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे ज्येष्ठीमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है।
मुलेठी के गुण -
- यह ठंडी प्रकृति की होती है और पित्त का शमन करती है .
- मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
- अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
- गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
- मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से वे अपनी सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
- लगभग एक महीने तक , आधा चम्मच मुलेठी का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मासिक सम्बन्धी सभी रोग दूर होते है.
- फोड़े होने पर मुलेठी का लेप लगाने से जल्दी ठीक हो जाते है.
- रोज़ ६ ग्रा. मुलेठी चूर्ण , ३० मि.ली. दूध के साथ पिने से शरीर में ताकत आती है.
- लगभग ४ ग्रा. मुलेठी का चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है.
- इसके आधा ग्राम रोजाना सेवन से खून में वृद्धि होती है.
- जलने पर मुलेठी और चन्दन के लेप से शीतलता मिलती है.
- इसके चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
- मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से कान का दर्द और सूजन ठीक होता है.
- उलटी होने पर मुलेठी का टुकडा मुंह में रखने पर लाभ होता है.
- मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।
- मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
- खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
- हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
- मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है।
- ये एक प्रकार की एंटीबायोटिक भी है इसमें बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटो में भी लाभदायक होती है।
- मुलेठी के चूर्ण से आँखों की शक्ति भी बढ़ती है सुबह तीन या चार ग्राम खाना चाहिये।
- यदि भूख न लगती हो तो एक छोटा टुकड़ा मुलेठी कुछ देर चूसे, दिन में ३,४, बार इस प्रक्रिया को दोहरा ले ,भूख खुल जाएगी .
- कोई भी समस्या न हो तो भी कभी-कभी मुलेठी का सेवन कर लेना चाहिए आँतों के अल्सर ,कैंसर का खतरा कम हो जाता है तथा पाचनक्रिया भी एकदम ठीक रहती है

मधुमालती



पेड़ पौधे भगवान की बनाई हुई दवाई की जीवित फैक्टरियां है . अपने आस पास ही बाग़ बगीचों में नज़र दौडाएं तो कई लाभदायक जड़ी बूटियाँ मिल जाएंगी . मधुमालती की बेल कई घरों में लगी होंगी इसके फूल और पत्तियों का रस मधुमेह के लिए बहुत अच्छा है . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है . इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है .
प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .

शनिवार, 15 मार्च 2014

रंग ही नहीं औषधि भी हैं टेसू के फूल
पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू , किंशुक, केसू )
बसंत शुरू होने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों तथा जंगलों में पलाश फूल खिलना शुरू हो जाते हैं। पलाश फूलों से छठा सिंदूरी हो जाती है। पेड़ों पर पलाश फूल होली के कुछ दिन बाद तक रहते हैं जिसके बाद झडऩा शुरू हो जाते हैं। पलाश के फूल ही नहीं इसके पत्ते, टहनी, फली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा आयुर्वेदिक तथा धार्मिक महत्व है। देश में प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद इसका व्यवसायिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। आयुर्वेद की माने तो होली के लिए रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। यही नहीं पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है।
कुछ वर्षों पूर्व तक होली मात्र पलाश फूल से बने प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी। ये प्राकृतिक रंग त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते थे लेकिन बाजार में केमिकल वाले रंग पहुंच चुके हैं तथा अब प्राकृतिक रंगों का उपयोग नहीं के बराबर होता है। पलाश फूलों से पहले कपड़ों को भी रंगा जाता था। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।
पलाश के फूल की उपयोगिता को कई लोग जानते नहीं है और जिसके कारण ये बेशकीमती फूल पेड़ से नीचे गिरकर नष्ट हो जाते हैं। पलाश के पेड़ के पत्ते भी बेहद उपयोगी हैं। पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोना पत्तल बनाने के लिए करते हैं। पलाश के जड़ से रस्सी बनाकर धान की फसल को भारा बांधने के उपयोग में लाया जाता हैं। पलाश की फली कृमीनाशक है |
आधुनिकता के इस युग में भी ब्रज क्षेत्र में टेसू से होली खेलने की परंपरा है। रासायनिक रंगों के मुकाबले ये ज्यादा सुरक्षित हैं और त्वचा रोग के लिए औषधितुल्य होते हैं।
आधा किलो टेसू के फूल पन्द्रह लीटर पानी में लिए बहुत है।बृज के मथुरा, आगरा, हाथरस, दाऊजी, गोकुल आदि क्षेत्र में इसका जबरदस्त प्रचलन है। नंदगांव बरसाने की लट्ठमार होली हो या फिर दाऊजी का हुरंगा, इनमें टेसू के फूलों का जमकर प्रयोग होता है। बिहारी जी के मंदिर में खेली जाने वाली होली में भी टेसू के फूलों का प्रचलन है।त्वचा रोग विशेषज्ञ का कहना है कि इससे एलर्जी नहीं होती है जबकि केमिकल वाले रंग-गुलाल त्वचा के लिए हानिकारक है। इनसे शरीर पर जलन होती है।
टेसू के फूल में औषधि के बहुत से गुण है। टेसू के फूल त्वचा रोग में लाभकारी है। टेसू के फूल को घिस कर चिकन पाक्स के रोगियों को लगाया जा सकता है।

टेसू का फूल असाध्य चर्म रोगों में भी लाभप्रद होता है। हल्के गुनगुने पानी में डालकर सूजन वाली जगह धोने से सूजन समाप्त होती है।
चर्मरोग के लिये टेसू और नीबू

टेसू के फूल को सुखाकर चूर्ण बना लें। इसे नीबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है

गुरुवार, 13 मार्च 2014

गुलकंद (Gulkand) से उपचार एव बनाने की विधि::


गुलकंद एक आयुर्वेदिक टॉनिक है। गुलाब के फूल की भीनी-भीनी खुशबू और पंखुड़ियों के औषधीय गुण से भरपूर गुलकंद को नियमित खाने पर पित्त के दोष दूर होते हैं तथा इससे कफ में भी राहत मिलती है। गर्मियों के मौसम में गुलकंद कई तरह के फायदे पहुंचाता है। गुलकंद कील मुहांसो को दूर करता है अरु रक्त शुद्ध करता है, हाजमा दुरुस्त रखता है और आलस्य दूर करता है। गुलकंद शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है और कब्ज को भी दूर करता है।सीने की जलन और हड्डियो के रोगो में लाभकारी है, सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुलकंद खाने पर मसूढ़ों में सूजन या खून आने की समस्या दूर हो जाती है। पीरियड के दौरान गुलकंद खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है। मुंह का अल्सर दूर करने के लिए भी गुलकंद खाना फायदेमंद होता है।

गुलकंद बनाने की विधि::

समाग्री:: ताजी गुलाब की पंखुडियां, बराबर मात्रा में चीनी, एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ

विधि:: गुलाब की ताजी व खुली पंखुडियॉं लें ,अब कांच की बडे मुंह की बोतल लें इसमें थोडी पंखुडियां डालें अब चीनी डालें फिर पंखुडियां फिर चीनी अब एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ डालें फिर उपर से पंखुडियां डालें फिर चीनी इस तरह से डब्बा भर जाने तक करते रहें इसे धूप में रख दें आठ दस दिन के लिये बीच- बीच में इसे चलाते रहें चीनी पानी छोडेगी और उसी चीनी पानी में पंखुडियां गलेंगी। (अलग से पानी नहीं डालना है) पंखुडियां पूरी तरह गल जाय यानि सब एक सार हो जाय । लीजिये तैयार हो गया आपका गुलकंद।


मंगलवार, 11 मार्च 2014

मुंहासों (Pimpal) के लिए घरेलू नुस्खे -


  1. नीम : यह त्वचा में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है। इसके प्रयोग से मुंहासे में जादू जैसा लाभ होता है। चार-पांच नीम की पत्तियों को पीसकर मुलतानी मिट्टी में मिलाकर लगाएं, सूखने पर गरम पानी से धो लें।
  2. दही में कुछ बूंदें शहद की मिलाकर उसे चेहरे पर लेप करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में मुहांसे दूर हो जाते हैं।
  3. जामुन की गुठली को पानी में घिसकर चेहरे पर लगाने से मुहासे दूर होते हैं।
  4. नीम के पेड़ की छाल को घिसकर मुहांसों पर लगाने से भी मुहांसे घटते हैं।
  5. तुलसी व पुदीने की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें तथा थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से भी मुहांसों से निजात मिलती है।
  6. 1 चम्मच टमाटर का रस, 1 छोटा चम्मच मुल्तानी मिट्टी और 1 चम्मच पिसी हुई मसूर की दाल को थोड़े से गुलाबजल में मिलाकर चेहरे पर लगा लें और सूखने के बाद ठण्डे पानी से धो लें।
  7. जैतून के तेल को रोज रात में सोते समय चेहरे पर लगाएं ऐसा करने से मुंहासे और चेहरे पर हो रही फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
  8. नीबू के रस में गुलाबजल मिलाकर चेहरे पर लगाएं। तीस मिनट बाद चेहरा पानी से धो लें।
  9. आलू उबाल कर छिलके छील लें और इसके छिलकों को चेहरे पर रगड़ें, मुंहासे ठीक हो जाएंगे।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

फटी एड़ियो का उपचार:

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं।

यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं। एक कहावत शायद इसलिए प्रसिद्ध है-
जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।

घरेलू इलाज

* अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं। कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी।

* त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं।

चावल को पीसकर नारियल में छेद करके भर दें और छेद बन्द करके रख दें। 10-15 दिन में चावल सड़ जाएगा, तब निकालकर चावल को पीसकर बिवाइयों में रोज रात को भर दिया करें। इस प्रयोग से भी बिवाइयां ठीक हो जाती हैं।

* गुड़, गुग्गल, राल, सेंधा नमक, शहद, सरसों, मुलहटी व घी सब 10-10 ग्राम लें। घी व शहद को छोड़ सब द्रव्यों को कूटकर महीन चूर्ण कर लें, घी व शहद मिलाकर मल्हम बना लें। इस मल्हम को रोज रात को बिवाइयों पर लगाने से ये कुछ ही दिन में ठीक हो जाती हैं।

* रात को सोते समय चित्त लेट जाएं, हाथ की अंगुली लगभग डेढ़ इंच सरसों के तेल में भिगोकर नाभि में लगाकर 2-3 मिनट तक रगड़ते हुए मालिश करें और तेल को सुखा दें। जब तक तेल नाभि में जज्ब न हो जाए, रगड़ते रहें। यह प्रयोग सिर्फ एक सप्ताह करने पर बिवाइयां ठीक हो जाती हैं और एड़ियां साफ, चिकनी व मुलायम हो जाती हैं। एड़ी पर कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं।

होठों का खुश्की से बचाव

नाभि में रोजाना सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते और फटे हुए होंठ मुलायम और सुन्दर हो जाते है। साथ ही नेत्रों की खुजली और खुश्की दूर हो जाती है।

या सरसों का तेल कनपटी में मलिए, कान में डालिए, नाक में सुड़किए, नाभि में लगाइए - इससे नेत्र-ज्योति तथा मस्तिष्क - शक्ति बढ़ती है। जुकाम कभी नहीं होता। सर्दी के दिनों में प्रतिदिन सरसों का तेल नाभि पर लगाने से हाथ पांव भी नहीं फटते और हाथ पैरों की चमड़ी खुरदरी नहीं होती।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

घर में लगाइये मच्‍छरों को दूर भगाने वाले पौधे

मच्छरों को भगाने के लिए ऐसे पौधे आपके आसपास ही मौजूद हैं। तुलसीगेंदारोजमेरी और लौंग कुछ ऐसे ही पौधों के उदाहरण हैं जिन्हें लगा कर आप मच्छरों से भी बच जाएंगे और आपके पैसे भी नहीं खर्च होंगे। साथ ही आप कैमिकल्स के प्रभाव से भी बचे रहेंगे। आइए जानते हैं इन पौधों के बारे में:

* गेंदे का फूल : यह बहुत ही आम फूल है और हर घर में पाया जाता है। इसकी गंध बहुत तीखी होती है इसलिए यह मच्छरों को दूर भगाने में सहायक होता है। इसके आसपास तक मच्छर नहीं फटकते हैं।

* सिट्रोनेला : : दरअसलयह एक घास की प्रजाति का एक पौधा है जिसमें से नींबू की तरह सिट्रस की खुशबू आती है।

* तुलसी : : हर हिंदू घर में तुलसी का पौधा जरूर होता है। इसकी तेज खुशबू मच्छरों को परेशान  कर देती है और वे भाग जाते हैं।

* हार्समिंट : : यह एक तरह का मिंट पौधा है जिसमें से कसैली गंध आती है। इसको लगा कर आप मच्छरों को दूर रख सकते हैं।

* विडालपर्णास : : इस पौधे में मच्छरों को भगाने वाले क्वॉयल और स्प्रे से कहीं ज्यादा कैमिकल होता है।

* लेमन बाल्म : यह दिखने में पुदीने के पौधे की तरह लगता हैलेकिन इसमें नींबू की महक आती है। इस पौधे को घर में रखें या बाहर लगाएंआपको पूरा फायदा होगा।

* लैवेंडर : : इस पौधे की खुशबू बड़ी तेज होती है इसलिए यह मच्छरों को भगाने का काम कर सकती है।

* रोजमेरी : : इस पौधे के कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे हैं। यह एंटी बैक्टीरियल होता है और गार्डन में लगाने पर मच्छर और कीट दोनों का ही सफाया होता है।

लौंग: इस मसाले में बहुत तेज खुशबू होती हैजिसको सूंघने से मच्छर ज्यादा देर तक नहीं टिकते।

मच्छरों से करें बचाव

    -घर या ऑफिस के आस-पास पानी जमा न होने देंगड्ढों को मिट्टी से भर दें और रुकी हुई नालियों को साफ करें।

    - अगर पानी जमा होने से रोकना मुमकिन नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसीन ऑइल डालें।

    - रूम कूलरोंफूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करेंउन्हें सुखाएं और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे,टायरबर्तनबोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उलटा करके रखें।

    - डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।

    - अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।

    - ऐसे कपड़े पहनेंजिनसे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है। बच्चों को मलेरिया सीजन में निकर व टी-शर्ट न पहनाएं।


    - रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं।
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चाकलेट के दुष्परिणाम


चाकलेट ह्रदयमस्तिष्कमन व बुद्धि पर विपरीत प्रभाव डालता है इसका सेवन कई घातक बीमारियों का कारण है इसमें पाये जानेवाले हानिकारक तत्त्व है :

(
१) कैफीन : व्यक्ति को चाकलेट खाने के अधीन करता है इससे चित्त अधिक विचलित होता है नींद बिगड़ती है सिरदर्द व आँतों के विकार उत्पन्न होते है ह्रदयरक्त-संचरणग्रंथियों से संबंधित तकलीफेंतंत्रिका-विकारअस्थि-भंगुरता (osteoporosis), महिलाओं में प्रसव-संबंधी तकलीफें तथा अन्य रोग होते हैं|

(
२) सीसा ( Lead ) : यह एक अत्यंत हानिकारक खनिज हैजो बोद्धिक विकास रोकता है |इससे बुद्धि -गुणांक ( IQ ) कम होता है ह्रदय की गति में अतिरिक्त वृद्धी होती है |

(
३) थियोब्रोमाइन असामान्य ग्रंथि-वृद्धिअवसादबेचैनीअनिंद्रापाचनतंत्र के रोग और खुजली जैसे कई रोग होते हैं |

(
४) वेसोएक्टिव एमाइन्स मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों को प्रसारित कर सिरदर्द कराते हैं |

(
५) सेच्युरेटेड फेट्स व अतिरिक्त शर्करा : कोलेस्ट्राल व ब्लडप्रेशर बढ़ाते हैं ह्रदय की रक्तवाहिनियों को अवरुद्ध कर ह्रदयरोग उत्पन्न करते हैं इनसे मोटापादाँतों के रोग व कील-मुंहासे होते हैं |

(
६) थियोफालीन : पेट की तकलीफें व तंत्रिका-विकार होते हैं |

७) टिरपटोंफेन शुरू में ख़ुशी व स्फूर्ति का एहसास दिलाकर बाद में थकाता है अत:हानिकारक द्रव्यों से युक्त ऐसे चाकलेट का सेवन करने की अपेक्षा स्वास्थ्यबुद्धि व बलवर्धक तुलसी-गोलियों का सेवन करें |
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बवासीर की तकलीफ़ दूर करने के लिए

बवासीर की तकलीफ़ दूर करने के लिए





* 15 ग्राम काले तिल पिसकर, 10-15 ग्राम मख्खन के साथ मिलाकर सुबह सुबह खा लो । कैसा भी बवासीर हो मिट जाता है ।


जिनको बवासीर हैशौच वाली जगह से जिनको खून आता हैवे २ नींबू का रस निकालकर,छान लें और एनिमा के साधन से शौच वाली जगह से एनिमा द्वारा नींबू का रस लें और १० मिनट सिकोड़ कर सोये रहें । इतने में वो नींबू गर्मी खींच लेगा और शौच होगा । हफ्ते में ३-४ बार करें.......कैसा भी बवासीर हो.........फायदा होगा ।


नीम :-


  • नीम के पके हुए फल को छाया में सुखाकर इसके फल का चूर्ण बना लें। ग्राम चूर्ण सुबह जल के साथ खाने से बवासीर रोग ठीक होता है।
  • लगभग 50 मिलीलीटर नीम का तेलकच्ची फिटकरी ग्रामचौकिया सुहागा ग्राम को बारीक पीस लें। शौच के बाद इस लेप को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से मिट जाते हैं।
  • नीम के बीजबकायन की सूखी गिरीछोटी हरड़शुद्ध रसौत 50-50 ग्रामघी में भूनी हींग 30 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें 50 ग्राम बीज निकली हुई मुनक्का को घोंटकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें, 1 से गोली को दिन में बार बकरी के दूध के साथ या ताजे लेने से बवासीर में लाभ मिलता हैंऔर खूनी बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
  • नीम की गिरी का तेल 2-5 बूंद तक शक्कर (चीनी) के साथ खाने से या कैप्सूल में भर कर निगलने से लाभ मिलता है। इसके सेवन के समय केवल दूध और भात का प्रयोग करें।
  • नीम के बीज की गिरीएलुआ और रसौत को बराबर भाग में कूटकर झड़बेरी जैसी गोंलियां बनाकर रोजाना सुबह 1-1 गोली नीम के रस के साथ बवासीर में लेने से आराम मिलता है।
  • नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और नीम के पेड़ की छाल 200 ग्राम को पीसकर1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली दिन में बार दिन तक खिलाने से तथा नीम के काढ़े से मस्सों को धोने से या नीम के पत्तों की लुगदी को मस्सों पर बांधने से लाभ मिलता है।
  • 100 ग्राम सूखी नीम की निबौली 50 मिलीलीटर तिल के तेल में तलकर पीस लें,बाकी बचे तेल में ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा मिलाकर मलहम या लेप बनाकर दिन में से बार मस्सों पर लगाने से मस्सें दूर हो जातें हैं।
  • फिटकरी का फूला ग्राम और सोना गेरू ग्रामनीम के बीज की गिरी 20 ग्राम में घी या मक्खन मिलाकर या गिरी का तेल मिलाकर घोट लेंइसे मस्सों पर लगाने से दर्द तुरन्त दूर होता हैं और खून का बहना बन्द होता है।
  • 50 ग्राम कपूरनीम के बीज की गिरी 50 ग्राम को दोनों का तेल निकालकर थोड़ी-सी मात्रा में मस्सों पर लगाने से मस्सें सूखने लगते हैं।
  • नीम की गिरीरसौतकपूर व सोना गेरू को पानी पीसकर लेप करें या इस लेप को एरण्ड के तेल में घोंटकर मलहम (लेप) करने से मस्से सूख जाते हैं।
  • नीम के पेड़ की 21 पत्तियों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीसकरबिना मसाला डालेंघी में पकाकर 21 दिन तक खाने से और खाने में छाछ और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ हो जाता है। ध्यान रहे कि नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
  • नीम के बीजों को तेल में तलकरउसी में खूब बारीक पीस लें। इसके बाद फुलाया हुआ तूतिया डालकर मस्सों पर लेप करना चाहिए।
  • पकी नीम की निबौंली के रस में ग्राम गुड़ को मिलाकर रोजाना सुबह सात दिन तक खाने से बवासीर नष्ट हो जाता है।
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